महिलाओं को देश की संसद व विधानमंडलों में 33 प्रतिशत आरक्षण देने की प्रतिबद्धता सुनिश्चित करने वाला महिला आरक्षण विधेयक राज्यसभा द्वारा भले ही पारित हो चुका हो, लेकिन अभी तक लोकसभा द्वारा बहुमत की मुहर नहीं लगना हमारी सरकार और राजनैतिक दलों की इस बिल के प्रति महत्वहीनता से ग्रस्त मंशा को प्रकट करता है।
देश की वर्तमान लोकसभा को देखे तो केवल मात्र 65 सांसदों के साथ 11.93 फ़ीसदी महिलाएं प्रतिनिधित्व में है। वहीं राज्यसभा में महज़ 28 सांसदों के साथ 12.2 प्रतिशत ही महिला सदस्य हैं।
भाजपा हो या कांग्रेस, किसी दल में 33 फ़ीसदी नहीं है सक्रिय महिलाएं:
गौरतलब है कि महिलाओं को संसद व राज्य विधानमंडल में 33 प्रतिशत आरक्षण दिलाने के लिए मांग तो अक्सर सभी राजनैतिक दल उठाते रहे हैं, लेकिन ध्यानपूर्वक देखा जाए तो मालूम होता है कि इन दलों के अंदर ही महिला भागीदारी 33 फ़ीसदी तक नहीं है। देश की लगभग सभी राजनैतिक पार्टियां प्रत्येक स्तर के चुनाव में महिलाओं को पुरुषों के मुक़ाबले बेहद कम सीट पर दावेदार बनाती है। ऐसे में महिलाएं सदन व विधानमंडलों में 33 फ़ीसदी स्थान बना पाए इसकी उम्मीद करना ही बेमानी लगती है।
संसद के दोनों सदनों में विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा महिलाओं को दिए गए प्रतिनिधित्व के आधार पर देखा जाए तो ज्ञात होता है कि लोकसभा में भाजपा के 11.57 प्रतिशत तथा कांग्रेस के 9 प्रतिशत ही महिला सांसद है। यहां तृणमूल कांग्रेस के 35 प्रतिशत से अधिक महिला सांसद है। राज्यवार देखने पर आंकड़े अधिक चौंकाने वाले हैं क्योंकि देश के एक भी राज्य से 33 प्रतिशत महिलाएं निर्वाचित होकर लोकसभा में नहीं पहुंची है। संसद के उच्च सदन राज्यसभा में देखा जाए तो यहां 73 सांसदों वाली भाजपा के महज़ 7 महिला सांसद है तथा 50 सांसद वाली कांग्रेसी खेमे से 7 महिला सांसद आती हैं। वहीं 13 सांसदों वाली तृणमूल कांग्रेस से केवल 2 महिलाएं ही राज्यसभा में सांसद हैं।
इस तरह सियासी स्वार्थसिद्धि की लपटों में झूल रहा भारतीय राजनैतिक परिदृश्य नज़दीकी भविष्य में महिलाओं को बराबरी का हक़ दे पाए, इसकी संभावना न के बराबर ही नज़र आती है। शायद यहीं कारण है कि साल 2010 में राज्यसभा से पारित हो चुका महिला आरक्षण विधेयक आज तक लोकसभा में अटका हुआ है।
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