आखिर राजद्रोह का क़ानून (धारा 124A) हटाने सम्बंधित कांग्रेस की घोषणा पर इतना बवाल क्यों!!

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image credit: cjp.org.in

मंगलवार को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव हेतु अपना घोषणा पत्र जारी किया। सरकार में आने पर कांग्रेस पार्टी का देश से सम्बंधित सभी विषयों पर क्या रुख रहेगा, इस घोषणा पत्र में उल्लेखित है, लेकिन विषय जो सबसे चर्चित और विवादास्पद रहा वह है राजद्रोह का क़ानून अथवा आईपीसी की धारा 124A को ख़त्म करने सम्बंधित घोषणा। कांग्रेस पार्टी ने अपने घोषणा पत्र के अंतर्गत इस धारा को निरस्त करने की बात के साथ शामिल किया कि इस क़ानून का दुरुपयोग किया जाता रहा है, और अन्य कई घटनाओं के कारण आज यह अनावश्यक और असंबंधित हो गया है।

Indian national congress manifesto’s cutting

इस घोषणा पत्र के बाद भाजपा नेताओं समेत देश के अनेकों लोगों ने कांग्रेस के इस एलान को अनुचित ठहराया। भाजपा की तरफ से तो यहां तक कहा गया कि कांग्रेस का नेतृत्व माओवादियों, जिहादियों के हाथों में हैं, तथा इस घोषणा पत्र को टुकड़े-टुकड़े गैंग द्वारा बनाया गया है। सोशल मीडिया पर देखा जाए तो हर तरफ़ आईपीसी की धारा 124A को ख़त्म करने सम्बंधित कांग्रेस पार्टी की घोषणा पर बहस छिड़ी हुई है। इस बहस में कुछेक जहां इस घोषणा को स्वागत योग्य बता रहे हैं तो अनेकों बिना जाने-समझे ही इसकी निंदा करने में मशगूल हैं।

तो क्या वास्तव में आज धारा 124A या देशद्रोह के क़ानून की ज़रूरत है:

भारत पर जब औपनिवेशिक शासन के अधीन ब्रिटिश राजशाही का अधिपत्य था तब अंग्रेज़ शासन द्वारा अपनी सत्ता को सुरक्षा कवच प्रदान करने के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124A लाइ गई थी। 124A के तहत यदि कोई भी यदि बोलकर, लिखकर, भाषण, अभिव्यक्ति, प्रदर्शित कर कानून-निर्देश व्यवस्था द्वारा भारत में स्थापित सरकार के खिलाफ किसी तरह का विद्रोह या नफरत भड़काने की कोशिश करता है या भड़काता है तो उसे दंड दिया जाने का प्रावधान है यह दंड क़ैद या जुर्माना अथवा दोनों हो सकता है। इस धारा की अवमानना के कारण महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, जवाहर लाल नेहरू आदि अनेकों क्रांतिकारियों को तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार कर जेलखाने में डाला गया था। उस समय पर भारत में अंग्रेजी हुकूमत ताक़त के बल पर शासन कर रही थी, ऐसे में सरकार के खिलाफ बोलने वाले हर एक व्यक्ति पर राजद्रोह की धारा के तहत मुक़दमा दर्ज़ कर लिया जाता था। ऐसे में सोचने का विषय यह है कि क्या आज एक लोकतांत्रिक, संप्रभु राष्ट्र में ऐसे क़ानून का उसी रूप में मौजूद होना उचित है!

गौरतलब है कि भारतीय संविधान के भाग 3 में उल्लेखित मूल अधिकारों में से अनुच्छेद 19(1) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, लेकिन साथ ही 19(2) इस स्वतंत्रता को सशर्त बना देता है। इसी के साथ 124A का प्रावधान हमारे पुलिस तंत्र को मनमानी शक्तियां देता है, क्योंकि यह पुलिस तय करती है कि कौनसा भाषण या कार्य सरकार के विरोध में सार्वजनिक हिंसा को भडकावा देता है अथवा नहीं।

इसी के साथ देखें तो वर्ष 1950 के रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य के मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि आईपीसी की धारा 124A या राजद्रोह का कानून संविधान के प्रावधानों से असंगत है।

बावजूद इसके पिछले कुछ वर्षों में सरकार की आलोचना करने वाले कई पत्रकारों और नौजवानों को इस धारा के तहत गिरफ्तार किया गया है, सोशल मीडिया पर की गई पोस्ट में अर्थ की विविधता के आधार पर भी ऐसा किया गया। ऐसे में यह स्पष्ट तौर पर ज़ाहिर है कि कही न कही सरकारी मशीनरी द्वारा इस धारा का अनुचित उपयोग तो किया गया है। इसी के साथ एक महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि जब वर्ष 1980 में संसद द्वारा अधिनियमित ‘राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून’ केंद्र व राज्य सरकार को देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने में बाधा पहुंचाने व क़ानून-व्यवस्था में रुकावट डालने वाले किसी असंदिग्ध व्यक्ति को गिरफ्तार करने की शक्ति देता है तो फिर अलग से राजद्रोह के लिए धारा 124A के क्या मायने!

विचार करना होगा, क्योंकि हमारी संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली में सरकार गठन का आधार दलीय हैं, और जनतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत सरकार या सरकार में बैठे किसी राजनैतिक दल की आलोचना करना यदि अपराध की श्रेणी में आता है तो लोगों के द्वारा, लोगों में से, लोगों के लिए सरकार का चुना जाना आधारहीन व व्यर्थ है।

इसी के साथ कमाल है कि कांग्रेस न अभी सत्ता में है, और न ही निकट भविष्य में अपने दम पर केंद्र में सरकार बना पाने की स्थिति में है, बावजूद आश्चर्य कि राजद्रोह का क़ानून (धारा 124A) हटाने की घोषणा पर ही बवाल छाया हुआ है।

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