सिंधु नदी जल समझौता नहीं तोड़ने जा रहे हम, सिर्फ अपना पानी ही अपने पास रख रहे हैं, समझिए पूरा विषय

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tweeted by @nitin_gadkari

पुलवामा आतंकी हमले के बाद पकिस्तान के प्रति गुस्साई भारतीय जनता सोशल मीडिया और अन्य कई तरीकों से भारत सरकार तक यह बात पहुंचा रही है कि साल 1960 में पाकिस्तान के साथ हुआ सिंधु नदी जल समझौता अब भारत तोड़ ले और भारत से पाकिस्तान जाने वाले पानी को पूरी तरह रोक दें। इसी बीच कल केंद्रीय सड़क परिवहन, हाइवे एवं जल संसाधन, नदी विकास और गंगा पुनर्जीवन मंत्रालय के प्रभारी मंत्री नितिन गडकरी के बयानों के बाद से आमजन के मध्य ऐसा भ्रम फैलाया जा रहा है कि भारत सचमुच सिंधु नदी जल समझौते के तहत पाकिस्तान को मिलने वाला पूरा पानी रोकने जा रहा है। जबकि हकीकत तो यह है कि भारत सिर्फ अपना पानी अपने पास रख रहा है, समझौते के तहत पाकिस्तान को मिलने वाले पानी पर भारत ने रोक नहीं लगाईं है।

ऐसे समझिए इस विषय को:

गौरतलब है कि भारत से बहकर पाकिस्तान की तरफ़ जाने वाली सिंधु नदी की 6 सहायक नदियां है, जो इसका प्रवाहतंत्र पाकिस्तान की ओर बनाती है। सिंधु, झेलम, चेनाब, रावी, व्यास और सतलज ये 6 नदियां मिलकर विशाल सिंधु नदी तंत्र का निर्माण करती हैं। सितम्बर 1960 में वर्ल्डबैंक की मध्यस्थता में भारत और पाकिस्तान के मध्य इस नदी तंत्र के बंटवारे का समझौता हुआ। जिसके तहत भारत से बहकर जाने वाली सिंधु, झेलम और चेनाब के जल पर पाकिस्तान को अधिकार दे दिया गया, तथा अन्य तीन नदियां रावी, व्यास और सतलज भारत के अधिकार क्षेत्र में रखी गई। 1961 में इस समझौते के धरातल पर उतरने के बाद से समझौते के अनुसार पाकिस्तान को पानी मिलता रहा, लेकिन भारत के हिस्से में आई तीन नदियों का पानी भारत को पूरा नहीं मिल सका। इसका कारण यह रहा कि भारत के हिस्से में आई तीनों नदियों का प्राकृतिक ढ़लान भी पाकिस्तान की तरफ़ है, साथ ही ये नदियां पाकिस्तान में जाने से पहले, पाकिस्तान के हिस्से में आई नदियों से मिल जाती है। इसी के साथ भारत पाकिस्तान जाते हुए अपने हिस्से के पानी को अपनी तरफ़ मोड़ सकने में सफल नहीं हो पाया है, इससे भारत अपने हिस्से का भी बमुश्किल 25 फ़ीसदी ही उपयोग कर पा रहा है। भारत के हिस्से की नदियों का 75 फ़ीसदी पानी पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त को मिल रहा है।

तो अब सरकार क्या करने जा रही है:

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के बयान के बाद सोशल मीडिया सहित मुख्यधारा की मीडिया में फ़िज़ूल ही यह बात फैलाई जा रही है, कि भारत पाकिस्तान का पूरा पानी रोकने जा रहा है। हमारे न्यूज़ चैनल्स इसे पाकिस्तान को बूँद-बूँद से तरसाने वाला दाव तक बता रहे हैं। लेकिन नितिन गडकरी स्पष्ट कर चुके हैं कि भारत के इस क़दम से सिंधु नदी जल समझौते के तहत पाकिस्तान को मिलने वाले पानी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला।

नितिन गडकरी के अनुसार भारत सरकार ने अपने हिस्से के उस पानी को रोकने का फैसला किया है, जो पाकिस्तान में बहता था। इसके तहत हम हमारे अधिकार की रावी, व्यास और सतलज नदियों के पानी को डायवर्ट करके जम्मू – कश्मीर और पंजाब में अपने लोगों तक पहुंचाने वाले हैं।

इसके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर और पंजाब सीमा पर रावी नदी पर शाहपुर-कंडी में 2793 करोड़ रूपए की लागत से बांध निर्माण किया जा रहा है। 2022 तक इस प्रोजेक्ट के पूरा होने की उम्मीद है। इसी के साथ रावी नदी में मिलने वाली ऊझ नदी पर जम्मू-कश्मीर के कठुआ में 4750 करोड़ रूपए की लागत से बांध बनाया जाना प्रस्तावित किया गया है। इसके अतिरिक्त रावी-व्यास लिंक-2 के ज़रिए 784 करोड़ रूपए खर्च करके हरिके और हुसैनीवाला बांध के गेट पर दोनों नदियों को जोड़कर देश के अन्य हिस्सों में पानी पहुंचाए जाने की योजना पर निर्माण कार्य केंद्र सरकार ने शुरू किया है। इस तरह भारत अंतर्राष्ट्रीय संधि के तहत हुआ सिंधु नदी जल समझौते का उल्लंघन फिलहाल नहीं करने जा रहा है, लेकिन करीब 60 सालों से पाकिस्तान को सींचते आ रहे अपने हिस्से के पानी को रोकने के लिए सरकार ने कार्यवाही कर दी है।

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