राजनैतिक दलों के लिए इस बार आसान नहीं विद्याधर नगर की डगर

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राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों में राजधानी जयपुर की ख़ास सीट मानी जाने वाली विद्याधर नगर में इस बार चुनावी रण बिलकुल भी आसान नहीं होने वाला। झोटवाड़ा विधानसभा से अलग हुई विद्याधर नगर में अब तक दो बार 2008 और 2013 में विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। राजपूत बहुलता के कारण यह सीट एक निश्चित तरीके के अनुसार जातिगत आधार पर काम करती है।

पिछले दो चुनावों की बात करे तो दोनों बार प्रदेश की राजनीति के दिग्गज स्व.भैरों सिंह शेखावत के दामाद भाजपा प्रत्याशी नरपत सिंह राजवी यहां से विजेता रहे हैं, और दोनों ही बार कांग्रेस के विक्रम सिंह शेखावत को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है। मतलब साफ़ है कि क्षेत्र में टिकट वितरण का आधार जातिगत रहा है, और जीत भाजपा प्रभावित जनाधार के भरोसें। जातिगत तथ्यों को समझे तो स्पष्ट है कि क्षेत्र में सर्वाधिक मतदाता राजपूत जाति से आते हैं उसके बाद वैश्य वर्ग (बनिया) का भी अपना प्रभुत्व है। एक सुशिक्षित विधानसभा क्षेत्र में भी जातीय आधार पर निर्धारित होने वाला वोटबैंक लोकतांत्रिक अस्वस्थता की निशानी है। यह कब किस तरफ पलटी मार ले इसका अंदाजा लगाना इतना आसान नहीं।

विद्याधर नगर को लेकर इस बार कांग्रेस और भाजपा दोनों सांसत में:

स्थानीय जनों की माने तो इस बार विद्याधर नगर जीतना किसी राजनैतिक दल के लिए आसान नहीं रहने वाला। भाजपा और उसके प्रत्याशी नरपत सिंह राजवी के लिए यहां पसरी नाराज़गी और क्षेत्र में 10 साल की एंटी इंकम्बेंसी नकारात्मक कारक रह सकता है।

वहीं कांग्रेस ने इस बार पिछले दो बार से शिकस्त झेल रहे कद्दावर नेता विक्रम सिंह शेखावत और क्षेत्र के जनप्रिय व्यक्तित्व पूर्व आईएएस अधिकारी अजय सिंह चित्तौड़ा को किनारे कर प्रसिद्द उद्योगपति सीताराम अग्रवाल को मौक़ा दिया है। सीताराम अग्रवाल को उनकी साफ़ छवि का फ़ायदा मिल सकता है, परन्तु क्षेत्र में सीमित जनसम्पर्क और वोटबैंक का जातीय ध्रुवीकरण उनके लिए परेशानी का सबब बन सकता है।

बागी विक्रम सिंह बढ़ा सकते हैं मुश्किलें:

कांग्रेस द्वारा टिकट काटे जाने से नाराज़ विक्रम सिंह शेखावत इस चुनाव में बागी होकर मैदान में उतर आए हैं। 10 वर्षों से अधिक समय से विद्याधर नगर में लगातार मेहनत कर रहे विक्रम सिंह का यह किरदार किसके लिए हानिकारक और किसके लिए लाभदायक रहेगा, फिलहाल यह कह पाना मुश्किल है! एक तरफ तो विक्रम सिंह भाजपा के चिरकालीन राजपूत वोटबैंक में सेंध लगाएंगे, वहीं दूसरी ओर क्षेत्र के कांग्रेस कार्यकर्ताओं को तोड़कर कांग्रेस प्रत्याशी सीताराम अग्रवाल के लिए राह कठिन कर सकते हैं। इस सबके बीच यदि विक्रम सिंह निर्दलीय ही यह सीट निकाल ले जाए, तो इसमें भी अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए।

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