समझिए 200 प्वाइंट रोस्टर को लागू करने व फिर 13 प्वाइंट रोस्टर में बदलने की पूरी कहानी

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पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग को देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक पदों पर प्रतिनिधित्व देने के लिए दिसंबर 2005 में यूजीसी ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली के प्रोफ़ेसर रावसाहब काले की अध्यक्षता में एक 3 सदस्यीय समिति गठित की। प्रोफ़ेसर जोस वर्गीज और यूजीसी के तत्कालीन सचिव डॉ. आर. के. चौहान इस समिति के अन्य दो सदस्य थे। इस तरह काले समिति ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के दिशानिर्देशों के अनुसार 200 प्वाइंट रोस्टर प्रणाली की शुरुआत की। साथ ही 10 फरवरी, 1995 को भारत की सर्वोच्च अदालत द्वारा आर.के.सब्बरवाल और अन्य बनाम पंजाब राज्य के मामले में दिए गए फ़ैसले को आधार बनाकर काले समिति ने अपनी रिपोर्ट तैयार की थी। काले समिति की रिपोर्ट के आधार पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के दिशानिर्देशों में क्लॉज 6 (सी) व क्लॉज 8 (ए) (वी) जोड़ा गया।

क्या है क्लॉज 6 (सी) और क्लॉज 8 (ए) (वी):

क्लॉज 6 (सी) कहता है कि एक अधिनियम के अंतर्गत स्थापित एक या अधिक विश्वविद्यालयों तथा किसी एक विश्वविद्यालय के संघटक महाविद्यालयों को एक इकाई माना जाएगा। इनमें एक साथ शैक्षणिक भर्तियां निकालकर आरक्षण के प्रावधान लागू किए जाएंगे।

क्लॉज 8 (ए) (वी) आर. के. सब्बरवाल मामले से सम्बंधित है। इसमें साल दर साल रोस्टर से भर्ती पूरी करने का प्रावधान है। बैकलॉग व्यवस्था इसके अंदर है, जिससे पहले रिक्त रहे पदों को भरे जाने का प्रावधान है।

यूजीसी के दिशानिर्देशों में इन दोनों क्लॉज के जुड़ने के बाद भर्ती प्रक्रिया 200 प्वाइंट रोस्टर से संचालित होने लगी। इसका अर्थ है कि भर्ती के लिए निकले 200 पद तक रोस्टर क्रम से चलेगा, उसके बाद फिर 1 से भर्ती शुरू होकर 200 तक भरी जाएगी।

हमारे संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार अनुसूचित जनजाति के लिए 7.5 प्रतिशत, अनुसूचित जाति के लिए 15 प्रतिशत और अन्य पिछड़े वर्ग के लिए 27 फ़ीसदी आरक्षण नियत किया गया है। इस तरह 200 प्वाइंट रोस्टर द्वारा 101 पद सामान्य वर्ग के लिए अनारक्षित रहने के बाद, 54 पद अन्य पिछड़े वर्ग के लिए, 30 पद अनुसूचित जाति व 15 पद अनुसूचित जनजाति के लिए निर्धारित किए गए।

यूजीसी के आदेश व न्यायिक निर्णयों द्वारा ख़त्म किया गया 200 प्वाइंट रोस्टर:

5 मार्च 2018 को यूजीसी ने अपने एक आदेश द्वारा विश्वविद्यालय में शैक्षणिक पदों को भरने के लिए पूर्वनियत 200 प्वाइंट के रोस्टर में बदलाव किया। इस पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई। 7 अप्रैल, 2018 को न्यायलय ने फैसला सुनाते हुए यूजीसी के आदेश को सही करार दिया। इस तरह अब नियुक्तियों में दो बड़े बदलाव किए गए। पहला, 200 प्वाइंट की रोस्टर व्यवस्था को ख़त्म कर, 13 प्वाइंट की रोस्टर व्यवस्था लागू की गई। दूसरा, विश्वविद्यालयी आधार के आरक्षण को विभाग या विषय वार कर दिया गया। इलाहाबाद उच्च न्यायलय फैसले के खिलाफ केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 2018 के अप्रैल महीने में शीर्ष अदालत में स्पेशल लीव पिटीशन (एसएलपी) दायर की गई। सर्वोच्च न्यायालय ने इस एसएलपी को सुनवाई के लायक ही नहीं माना और 22 जनवरी, 2019 को इलाहबाद उच्च न्यायलय के पूर्व निर्णय को उचित ठहराते हुए फैसला दिया।

अब विभागीय रोस्टर 13 प्वाइंट लागू होने के बाद विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक पदों पर एससी, एसटी व ओबीसी का काबिज हो पाना बेहद मुश्किल हो जाएगा। अनुसूचित जनजाति के लिए नामुमकिन भी कह सकते हैं।

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