29 राज्यों व 7 केंद्रशासित प्रदेशों से मिलकर भारत संघ बना है। चंडीगढ़, दमन और दीव, दादर और नागर हवेली, लक्ष्यद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, पुद्दुचेरी सहित राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की गिनती देश के संघ शासित या केंद्र शासित प्रदेशों में होती है। भारत की संघ सरकार का बहुत हद तक इन संघ शासित राज्यों पर नियंत्रण होता है। बावजूद इसके दिल्ली और पुद्दुचेरी का अपना मुख्यमंत्री होता है। यहां की चुनी हुई सरकारें और केंद्र सरकार में अक्सर अधिकारों को लेकर टकराव होता रहा है। बात दिल्ली की करें तो पिछले कई वर्षों से दिल्ली पर से केंद्र सरकार का नियंत्रण समाप्त कर, इसे पूर्ण राज्य का दर्ज़ा देने की मांग उठती रही है। अक्सर राज्य की सत्ता से बाहर रहे राजनैतिक दल ने इसके लिए आवाज़ उठाई है, लेकिन पिछले 3 सालों से अरविन्द केजरीवाल की अगुआई में दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने केंद्र सरकार के सामने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा देने की मांग बड़ी मुखरता से उठाई है। मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल तो इस मांग को लेकर आगामी 1 मार्च से अनशन पर बैठने की बात भी कह चुके है।
समय-समय पर सभी पार्टियों ने उठाई है दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा देने की मांग:
गौरतलब है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा देने का पूरा अधिकार केंद्र सरकार के पास है। दिल्ली सरकार का इस विषय पर कोई वश नहीं है। यही कारण है कि 70 विधानसभा सीटों वाली दिल्ली में 67 विधायक सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के होने के बावजूद दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार के सामने पूर्ण राज्य देने की गुहार लगा रही है। दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा देने की मांग दिल्ली के सियासी इतिहास में उन सभी राजनैतिक पार्टियों ने उठाई है, जो कभी यहां की सत्ता में रही है। आज इस मांग को लेकर ‘आम आदमी पार्टी’ मैदान में है, तो कभी वरिष्ठ भाजपाई लालकृष्ण आडवाणी दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने का प्रस्ताव लेकर आए थे। दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के घोषणा पत्र में भी यह मांग शामिल थी। लेकिन आज केंद्र की भाजपा सरकार इस पर विचार भी नहीं करना चाहती। इसी तरह कांग्रेस ने भी कई बार यह मांग उठाई, लेकिन दिल्ली और केंद्र में एक समय पर शासन होने के बावजूद कभी कार्यवाही नहीं की।
दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना इसलिए मुश्किल:
केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली, भारत की राष्ट्रीय राजधानी भी है। देश की संसद, सभी मंत्रालय, राष्ट्रपति भवन, सभी उच्चायोग व राजदूतों के भवन/कार्यालय, सरकारी विभाग, संस्थाएं, स्मारक आदि दिल्ली में आते हैं। राजधानी दिल्ली में किसी तरह की चूक या खामी के होने पर ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार पर आती है। बाहरी देश से आने वाले सरकारी मेहमानों की भी दिल्ली में ही मेहमाननवाज़ी की जाती है। दिल्ली पुलिस भी केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आती है। ऐसे में कई कारण हैं जो दिल्ली के पूर्ण राज्य नहीं बनने की पैरवी करते नज़र आते हैं। वहीं दिल्ली के विकास के लिए केंद्र-दिल्ली सरकारों में तालमेल की कमी, भूमि, क़ानून व्यवस्था व अन्य कई मसलों पर दिल्ली की चयनित सरकार का खुलकर काम न कर पाना वे कारण हैं जो पूर्ण राज्य की मांग की तरफदारी करते हैं। पूर्ण राज्य की मांग करने वाली दिल्ली सरकार का कहना है कि नई दिल्ली म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन क्षेत्र व संसद, मंत्रालय जैसे राष्ट्रीय महत्व के क्षेत्र को केंद्र अपने पास रखकर, शेष दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दे सकती है। लेकिन बावजूद इसके समाधान निकलता अभी दिखाई नहीं दे रहा है।
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