मंगलवार को उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ वार्षिकोत्सव कार्यक्रम में जाने से रोक दिया गया। अपने प्राइवेट विमान से लखनऊ से प्रयागराज जाने के लिए निकले अखिलेश यादव को लखनऊ में ही सूबे के पुलिस प्रशासन ने कार्यक्रम स्थल पर जाने से रोक दिया।
बकौल अखिलेश- ”एक छात्र नेता के शपथ ग्रहण कार्यक्रम से सरकार इतनी डर रही है कि बिना किसी लिखित आदेश के मुझे एयरपोर्ट पर रोका गया। पूछने पर भी स्थिति साफ करने में अधिकारी विफल रहे। छात्र संघ कार्यक्रम में जाने से रोकना का एक मात्र मकसद युवाओं के बीच समाजवादी विचारों और आवाज को दबाना है।”
अखिलेश यादव के इन ट्वीट्स के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती की तरफ से कहा गया कि ”समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष व उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव को आज इलाहाबाद नहीं जाने देने कि लिये उन्हें लखनऊ एयरपोर्ट पर ही रोक लेने की घटना अति-निन्दनीय व बीजेपी सरकार की तानाशाही व लोकतंत्र की हत्या की प्रतीक है।”
विपक्षी सक्रियता का राजनैतिक डर इससे पहले भी सरकारों को सताता रहा है। पहले भी युवाओं के बीच वैचारिक प्रसार को सीमित करने की कोशिशें की गई हैं। यदि इससे लोकतंत्र की ह्त्या होती है, तो पहले भी ऐसी हत्याएं हुई हैं। राजनीति के औछेपन ने किसी को नहीं बख्शा। समय के दौहराते चक्र की तरह हर दौर में राजनीति ने अपना धूर्तपन सिद्ध किया है।
तब अखिलेश मुख्यमंत्री थे और योगी आदित्यनाथ को रोका गया था:
ऐसा नहीं है कि राजनैतिक पद का दुरुपयोग कर अभिव्यक्ति को कुचलने की यह घटना पहली बार हुई हो, अगस्त 2013 में अखिलेश के मुख्यमंत्री रहते योगी आदित्यनाथ को कानपुर सेंट्रल पर पुलिस ने जबरन ट्रेन से उतार लिया था, योगी तब झांसी के एक विवादित शिव मंदिर में पूजा करने जा रहे थे। इसके बाद साल 2015 में जब योगी आदित्यनाथ को इलाहाबाद जाने से रोका गया था, तब भी अखिलेश यादव यूपी के मुखिया थे।
इसी तरह हाल ही में योगी आदित्यनाथ के हेलीकाप्टर को ममता सरकार ने पश्चिम बंगाल में उतरने नहीं दिया था।
राजनीति की आड़ में अभिव्यक्ति और आवाज़ को दबाए जाने वाली ऐसी हरेक घटना की जयपुर टुडे निंदा करता है।
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