सीबीआई विवाद की पूरी कहानी, आखिर आलोक वर्मा को एक बार फिर जल्दबाज़ी में हटाने के मायने क्या?

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courtesy: PTI

सर्वोच्च न्यायालय से बहाली मिलने के दो दिन बाद सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को एक बार फिर सरकारी फरमान द्वारा हटा दिया गया। हालांकि इस बार वर्मा को हटाने की प्रक्रिया संवैधानिक रही है। प्रधानमन्त्री, भारत के मुख्य न्यायधीश की तरफ़ से नामित जस्टिस ए.के.सीकरी एवं नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की सदस्यता में गठित एक हाइ पावर चयन समिति ने बहुमत से निर्णय लेते हुए आलोक वर्मा को पदमुक्त किया है। यहां कमेटी ने केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की ओर से आलोक वर्मा के खिलाफ पेश रिपोर्ट में बहुमत द्वारा 10 में से 4 आरोप सही पाते हुए आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक पद से बर्खास्त कर दिया।

यहां सवाल है कि आखिर इतनी जल्दबाजी किस बात की:

पिछले साल अक्टूबर में सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के मध्य संस्था में अपने-अपने प्रभुत्व को लेकर विवाद हो गया था। दोनों अधिकारियों ने एक-दूसरे पर रिश्वत के आरोप लगाए। इस पर 23 अक्टूबर, रात 2 बजे आनन-फानन में वर्मा और अस्थाना को सरकार ने छुट्टी पर भेज दिया। साथ ही कई अफसर भी बदल दिए। अगले ही दिन आलोक वर्मा ने सर्वोच्च न्यायालय में खुद को पद से हटाए जाने के निर्णय को असंवैधानिक बताते हुए याचिका दायर की। साथ ही कहा कि न्यायपालिका सीबीआई को सरकारी नियंत्रण से बचाए। इस मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 8 जनवरी 2019 को फैसला देते हुए वर्मा को फिर से सीबीआई निदेशक पद पर बहाल किया। उन्हें छुट्टी पर भेजने सम्बंधित सरकारी फैसले को गलत बताते हुए स्पष्ट किया कि बिना हाइ पावर जांच कमेटी का गठन किए सरकार सीबीआई निदेशक को पद मुक्त नहीं कर सकती। इसी के साथ अदालत ने सरकार को एक सप्ताह के अंदर सीवीसी की रिपोर्ट के आधार पर हाई पावर कमेटी बनाकर सीबीआई निदेशक पर निर्णय लेने को कहा।

यहां न्यायालय ने सरकार को सीवीसी जांच रिपोर्ट का मुआयना कर, सीबीआई निदेशक पर निर्णय लेने के लिए एक सप्ताह का समय दिया था, लेकिन सरकार ने दो दिन में ही कमेटी गठन कर एक बार फिर जल्दबाज़ी में आलोक वर्मा को बर्खास्त कर दिया।

10 में से 6 आरोप सही नहीं माने गए। ऐसे में बहुमत के आधार पर सही प्रतीत होते 4 मामलों पर ही आलोक वर्मा को हटाने का क्या तुक?

क्या कारण था कि पहली बार में वर्मा को रात 2 बजे यकायक हटा दिया गया? वर्मा जानते थे कि उनके रिटायरमेंट को महीना भर ही शेष है फिर उन्होंने छुट्टी पर भेजे जाने के खिलाफ याचिका क्यों लगाई?

इन मामलों की जांच कर रहे थे आलोक वर्मा:

सीबीआई निदेशक की भूमिका में आलोक वर्मा राफेल सौदे से सम्बंधित कथित अनियमितता,  मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया रिश्वत मामले में हाई-प्रोफाइल लोगों की भूमिका, कोयला खदानों के आवंटन में प्रधानमन्त्री के सचिव भास्कर कुलबे की भूमिका आदि मामलों की जांच कर रहे थे। ऐसे में इस समय उन्हें पद से हटाना इन मामलों की जांच प्रक्रिया को बाधित करेगा, इसके आसार है।

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