लाठी खाई, जेल गए, धरना-मार्च किया। दलित-आदिवासियों का मसीहा माना जाता है इस नेता को

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Kirori lal meena

सामान्य सी कद-काठी वाले, राजस्थान के दौसा ज़िले की ग्रामीण पृष्ठभूमि से निकले किरोड़ी लाल मीणा का जन्म साल 1951 में प्रदेश की पिछड़ी एवं आदिवासी जाति में हुआ था। यह वह समय था जब देश एवं प्रदेश में पहले चुनाव भी संपन्न नहीं हुए थे। किसने सोचा होगा कि आगे चलकर यह शख्स प्रदेश की राजनीति में आला दर्ज़े के नेताओं में शुमार होगा। जयपुर टुडे में आज हम आपको बता रहे हैं, ‘राजस्थान का गांधी कहलाने वाले डॉ.किरोड़ी लाल मीणा के बारे में।

वह व्यक्ति जिसे सूबे में दलित, आदिवासियों का मसीहा माना जाता है। जिसने शिक्षा प्राप्त की तो समाज सेवा का संकल्प लिया। राजनीति में उतरा तो हाशिए पर खड़े नाउम्मीदों की आस बन गया। सामजिक संकीर्णता के कारण 10 वर्ष की उम्र में ही वैवाहिक बंधन में बंधने वाले किरोड़ीलाल ने सदैव ही बाल विवाह का विरोध किया। अपने आसपास के समाज एवं क्षेत्र में फैली कुरीतियों का प्रतिकार किया। दहेज़ प्रथा, दलित उत्पीड़न, मृत्युभोज, जातिगत भेदभाव, छुआछूत, शराबखोरी आदि अनेकों सामजिक बुराइयों का डटकर प्रतिरोध करते हुए किरोड़ी ने स्थानीय पिछड़े एवं आदिवासी समुदायों में सामजिक चेतना की अलख जगाई।

युवावस्था में ही राजनीति में प्रवेश कर गए:

बीकानेर के एसपी मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी करने वाले किरोड़ीलाल युवावस्था के दौरान ही मुख्यधारा की राजनीति में सक्रिय हो चुके थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा से जुड़े तो भाजपा में पदभार मिल गया। प्रदेश की सियासत के पुरोधा भैरों सिंह शेखावत के संपर्क में आए। 1980 में राजस्थान विधानसभा का चुनाव लड़ा, कुछ मतों के अंतर से हार गए। बावजूद इसके कभी पलटकर वापस नहीं देखा। 1981 में सवाई माधोपुर ज़िले में भाजपा के अध्यक्ष बने। 1985 में राजस्थान भाजपा के सचिव बने। उसी वर्ष विधायक का चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। साल 1989 में निर्वाचित होकर देश की 9वीं लोकसभा में सांसद बने। इसके बाद भाजपा में अनेकों पद मिलते रहे। सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों से जुड़े रहे। प्रदेश की सक्रिय राजनीति के माहिर खिलाड़ी बने रहे। साल 2008 वह वक़्त था, जब राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से मनमुटाव के चलते भाजपा छोड़ दी। 2009 के आम चुनाव में दौसा लोकसभा सीट पर निर्दलीय चुनाव लड़ा और शानदार जीत हासिल कर फिर से संसद पहुंचे। संसद की विभिन्न समितियों के सदस्य रहे।

दस साल बाद फिर भाजपा में सम्मिलित होने वाले किरोड़ी लाल मीणा का प्रभाव दौसा, टोंक, सवाई माधोपुर, करौली ज़िलों सहित जयपुर के मीणा बाहुल्य क्षेत्रों में अच्छा-खासा माना जाता है। पांच बार राजस्थान विधानसभा एवं दो बार लोकसभा के लिए निर्वाचित होने वाले किरोड़ी वर्तमान में प्रदेश से राज्यसभा सांसद भी है। किरोड़ी पर एक बात सटीक बैठती है कि वो कभी दमन के आगे झुके नहीं। अनेकों बार प्रदेश के दलित, आदिवासियों के हक़/अधिकारों के लिए पदयात्रा निकाली, पैदल मार्च किया, मंदिर प्रवेश के लिए आंदोलन किया तथा हर बार सामाजिक क्रांति की आवाज को बुलंद करते रहे। इस दौरान जेल जाना पड़ा, लाठियां खाई, यातनाएं झेली, लेकिन किरोड़ी डिगे नहीं, बस डटे रहे।

इस तरह डॉ. किरोड़ी लाल मीणा के राजनीतिक जीवन का विश्लेषण किया जाए तो अनायास ही प्रतिकूल परिस्थितियों में ज़मीनी संघर्ष के बूते उठ खड़े होने वाले व्यक्ति की छवि उभरती है।

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