बिहार के बेगूसराय से दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष और सीपीआई नेता कन्हैया कुमार सांसद दावेदार के तौर पर चुनावी मैदान में हैं। माना जा रहा था कि भाजपा विरोध में लामबंद हुआ विपक्ष पिछले 2 वर्ष से देशभर में मोदी सरकार के खिलाफ बुलंद आवाज़ बनकर उभरने वाले कन्हैया कुमार को बेगूसराय से संयुक्त उम्मीदवार बनाएगा। लेकिन कमाल यह कि कन्हैया इस सीट से अपनी पार्टी सीपीआई के टिकट पर ही लड़ रहे हैं, साथ ही विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने भी उनके खिलाफ अपना उम्मीदवार चुनाव में उतार रखा है। राजद की तरफ़ से कन्हैया कुमार को समर्थन न देने के मायने तो यही कहते हैं कि हो न हो बिहार में कन्हैया के राजनैतिक उभार से तेजस्वी यादव की राजनैतिक ज़मीन खिसकती सी लगाती है।
कन्हैया बेगूसराय में मज़बूत है, फिर राजद का समर्थन न देना तेजस्वी की महत्वाकांक्षा दर्शाता है:
गौरतलब है कि कन्हैया कुमार बेगुसराय लोकसभा सीट पर भाजपा के ख़िलाफ़ सबसे मज़बूत उम्मीदवार है। छात्र राजनीति के सहारे मुख्य राजनीति में कन्हैया का प्रवेश बेहद क्रांतिकारी घटना रही है। कुशल वक्ता कन्हैया कुमार जनसामान्य से जुड़ने में भी माहिर है, यही कारण है कि 2 वर्ष पूर्व लगे ‘देशद्रोही’ तमगे से छुटकारा पाकर कन्हैया देश के युवाओं में अति लोकप्रिय हुए हैं। इस तरह पिछले 2 वर्षों में एक छात्र नेता से विद्रोही राष्ट्रीय नेता के रूप में कन्हैया का उभार हुआ है, जिसे एक हद तक तेजस्वी बिहार में अपने अस्तित्व के लिए खतरे की तरह देख रहे हैं। दोनों युवा नेताओं की राजनैतिक विचारधारा बहुत हद तक समान है, और वंचित/शोषित वर्ग के प्रति सकारात्मक है। बावजूद इसके कन्हैया, वाक् कौशल और जनसम्पर्क के साथ ही शिक्षा, समझ, बुद्धिजीविता और सक्रियता में तेजस्वी से कही आगे हैं। कन्हैया की सामान्य पृष्ठभूमि भी एक वामपंथी नेता के रूप में उनकी शख्सियत को मज़बूती दे रही है। ऐसे में यदि कन्हैया बेगुसराय से चुनकर लोकसभा में पहुंचते हैं तो निश्चित ही बिहार की राजनीति में बड़ा चेहरा बनकर उभरेंगे। जिसके सामने तेजस्वी यादव बेअसर हो जाएंगे। राजनैतिक विश्लेषकों के तो यही कयास है कि इसीलिए तेजस्वी ने कन्हैया कुमार को समर्थन न देकर भाजपा विरोध के नाम पर उनके सामने मज़बूत प्रत्याशी तनवीर हसन को दावेदार बनाया है।