तारीख 13 दिसंबर, साल 2001, दिल्ली की यह सुबह भी दिसंबर की किसी ठिठुरन भरी भोर से कम न थी। सुबह के 11 बज रहे थे। संसद का शीतकालीन सत्र प्रारम्भ हो चुका था। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार पर ताबूत घोटाले के आरोप थे। राज्यसभा और लोकसभा की कार्यवाही चल रही थी। संसद के दोनों सदन सरकार पर आरोप-प्रत्यारोप की धार में उलझे हुए थे। हंगामे और बहसबाजी का स्तर बढ़ता देखकर दोनों सदनों में कार्यवाही स्थगित कर दी गई थी। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और विपक्षी दल की नेता सोनिया गांधी अपने-अपने सरकारी निवास की तरफ निकल चुके थे। गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नांडीस समेत तकरीबन 200 सांसद अब भी संसद भवन में मौजूद थे। कुछ संसद के हॉल में चर्चा कर रहे थे, तो कुछ बाहर गुनगुनी धूप में टहल रहे थे।
11 बजने के बाद आधा घंटा और बीत चुका था। उपराष्ट्रपति कृष्णकांत अपने काफिले के साथ सदन से बाहर आने वाले थे। गेट नंबर– 11 पर सुरक्षाकर्मी और उनका पूरा लवाजमा उपराष्ट्रपति के बाहर आने के इंतज़ार में था।
सफ़ेद एम्बेसडर में आए थे 5 आतंकी:
ठीक उसी समय संसद मार्ग से होती हुई एक सफ़ेद एम्बेसडर कार संसद भवन के गेट नंबर-11 की तरफ आने लगती है। अभी कुछ ही मिनटों में कृष्णकांत इस गेट से बाहर आने वाले थे। ऐसे में एक सुरक्षाकर्मी सामान्य से तेज रफ़्तार में दौड़ती इस एम्बेसडर को रुक जाने का इशारा करता है। गाडी की रफ़्तार और बढ़ जाती है। सुरक्षा बल का एक जवान उस एम्बेसडर का पीछा करता है। गेट नंबर-11 की जगह अब एम्बेसडर गेट नंबर-1 की तरफ जाने के लिए घूमती है। अनियंत्रित होकर उपराष्ट्रपति के काफिले की एक गाडी से टकरा जाती है। उपराष्ट्रपति की सुरक्षा पंक्ति के जवान सजग होकर उस ओर जाते हैं। एम्बेसडर के चारो गेट खुलते हैं। कंधे पर बैग लटकाए, हथियारों से लैस पांच आतंकी बाहर निकलते हैं। इसी बीच एएसआई जीतराम गोली चलाकर एक आतंकी को घायल कर देते हैं।
सोची समझी रणनीति के तहत हमला करने आए आतंकी सुरक्षाकर्मियों पर गोलीबारी करने लगते हैं। हैंड ग्रेनेड फेंक कर घातक हमला करते हैं। आतंकियों का पीछा कर इन्हें नाकाम करने वाले चार जवान शहीद हो जाते हैं।
गोलियों की तड़तड़ाहट और ग्रेनेड के धमाके को सुनकर संसद परिसर में मौजूद सुरक्षाकर्मी और पुलिस जवान मुस्तैद हो जाते हैं। दिल्ली पुलिस की टीम, सीआरपीएफ के जवान एवं कमांडों, आतंकियों की घेराबंदी में लग जाते हैं। बम स्कवॉड भी मोर्चा संभाल लेते हैं। आतंकी संसद के अंदर न घुस पाए, इसके लिए सभी गेट बंद कर दिए जाते हैं। सुरक्षा बलों द्वारा तमाम सांसदों, वरिष्ठ मंत्रियों को तुरत ही सदन के अंदर सुरक्षित स्थान पर ले जाया जाता है। आतंकी यह भांप चुके होते हैं कि अब यहां से ज़िंदा बचकर निकलना नामुमकिन है। ऐसे में घबराहट के साथ लगातार गोलीबारी करते हुए आतंकी संसद के हॉल में जाने के लिए भागना शुरू करते हैं। सतर्क हो चुके सुरक्षा बलों से विस्फोटक लादे हुए आतंकियों का आमना-सामना होता है। एक-एक करके पाँचों आतंकियों को ढेर कर दिया जाता हैं। लोकतंत्र के मंदिर को बचाने के लिए हुए इस भीषण संघर्ष में संसद भवन के सुरक्षाकर्मियों व दिल्ली पुलिस के जवान सहित कुल 9 लोग वीरगति को प्राप्त होते हैं।
कार को धमाका कर उड़ाने व सांसदों को बंदी बनाने की योजना थी आतंकियों की:
आतंकियों को ठिकाने लगाकर हमले को नाकाम बनाने के बाद जांच करने पर सामने आता है, कि जिस एम्बेसडर कार में आतंकियों ने संसद परिसर में घुसपैठ की थी, उसमे भारी संख्या में हथियार और विस्फोटक रखे हुए थे। बताया जाता है कि कार के अंदर करीब 30 किलो आरडीएक्स था। प्रत्यदर्शी मीडियाकर्मियों के मुताबिक़ सुरक्षा बलों द्वारा घेरे जाने के बाद आतंकी संसद के अंदर जाने के लिए रास्ता तलाशने लगे थे। संसद के अंदर मौजूद सांसदों को बंदी बनाना उनकी योजना में शामिल था। ऐसे में यदि आतंकवादी अपने मंसूबों में कामयाब हो जाते तो मंज़र भयानक हो सकता था।