भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारत के लोगों को राजनैतिक न्याय देने का भरोसा देती है, लेकिन यदि राजनीति में ही आपराधिक प्रवृत्ति का समावेश हो जाए तो समझिए कि यह अधिकार भी आपसे छिन गया। इस तरह राजनेताओं और राजनीति का अपराधीकरण व भ्रष्ट होना लोकतान्त्रिक राष्ट्र में अधिकारों का हनन है।
इसी को लेकर देश की शीर्ष अदालत में एक रिपोर्ट पेश हुई, यह रिपोर्ट कहती है कि देशभर के सांसदों, विधायकों व पूर्व जनप्रतिनिधियों के खिलाफ पिछले 30 सालों से 4122 आपराधिक मामलें अभी तक लंबित हैं। गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया और स्नेहा कालिता ने यह रिपोर्ट तैयार कर सौंपी है। इनमें 2324 मामलें मौजूदा सांसद-विधायकों के ऊपर दर्ज़ है। तथा 1675 मामलें पूर्व सांसद-विधायकों पर लंबित है। इसी रिपोर्ट को राज्यवार देखा जाए तो मालूम पड़ता है कि सबसे ज़्यादा 922 केस उत्तर प्रदेश से सम्बंधित सांसद-विधायकों पर दर्ज़ है।
चुनाव सुधार के लिए पहले भी उठाए जा चुके हैं कदम:
भारत में चुनाव सुधार एवं राजनीति का अपराधीकरण रोकने के लिए विभिन्न समितियों की रिपोर्ट प्रस्तुत हो चुकी है। इसके अंतर्गत निर्वाचन आयोग की अनुशंसाओं सहित निम्न कदम उठाएं गए हैं।
- चुनाव सुधार पर गोस्वामी समिति (1990)
- वोहरा समिति की रिपोर्ट (1993)
- चुनाव में सरकारी खर्चे पर गुप्ता समिति की रिपोर्ट (1998)
- चुनाव सुधार क़ानून के लिए लॉ कमीशन रिपोर्ट (1999)
- संवैधानिक कार्यप्रणाली की समीक्षा हेतु नेशनल कमीशन (2001)
- भारत निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव सुधार (2004)
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की अनुशंसाएं (2008)
भाजपा नेता ने दायर की थी दोषी साबित हो चुके नेताओं द्वारा चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की याचिका:
उल्लेखनीय है कि भाजपा नेता एवं पेशे से अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर रखी है। जिसके अंतर्गत गंभीर आपराधिक मामलों में दोषी साबित हो चुके नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की मांग भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सामने रखी गई है।