किस्सा नेहरू और निराला का, जब महाकवि के पैरों में प्रधानमन्त्री ने अपनी माला रख दी थी

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मौजूदा दौर में भारत के पहले प्रधानमन्त्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को कोसने वाले अनेक लेख तो आपने अक्सर ही पढ़े होंगे। आज जयपुर टुडे आपको बताने जा रहा है पंडित नेहरू का वह किस्सा, जो परिचायक है उनकी सादगी का, उनकी कद्रदानी का, उनकी विनम्रता का।

पंडित नेहरू देश के कविवर्ग की अक्सर सराहना करते थे। लोकतान्त्रिक परिपक्वता के लिए उन्हें विपक्ष की भूमिका निभाने को कहा करते थे। बात 1960 से पहले की है, जब जवाहर लाल नेहरू अपने चीन के दौरे से भारत वापिस आकर इलाहाबाद में अपनी एक जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे। अनगिनत प्रशंसकों व चाहने वालों के स्नेह को समेटे हुई अनेकों पुष्पमालाओं से पंडित नेहरू लदे हुए थे। अपने भाषण के बीच में पंडित नेहरू की नज़र सभा की अग्रिम पंक्ति में बैठे महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला पर पड़ी। पहलवानी करके सीधे नेहरू को सुनने सभा में आए निराला का शरीर अखाड़े की मिटटी में सना हुआ था। गमछा लपेटे हुए निराला बड़ी गंभीरता से देश के प्रधानमन्त्री का वक्तव्य सुन रहे थे। तब नेहरू ने कहा कि ”अपने चीन दौरे के समय मैनें एक महान राजा की कहानी सुनी। उस राजा के दो पुत्र थे। एक बेहद बुद्धिमान व एक कमअक्ल था। संन्यास लेते समय राजा ने अपना राजपाट कमअक्ल पुत्र को सौप दिया, और कहा कि यह जैसे-तैसे राजपाट संभाल सकता है। वहीं मेरा दूसरा पुत्र अति बुद्धिमान है, वह जगत के लिए महान कार्य करेगा, वह प्रतिभाशाली कवि बनेगा।”

इतना कहते ही नेहरू मंच से उतरे और अपने गले से माला उतारकर निराला के चरणों में रख दी। आसपास मौजूद लोग स्तब्ध थे। आखिरकार देश की राजव्यवस्था का प्रमुख बिना किसी लोभ, लालच व स्वार्थ के शब्दों की सजावट के पुरोधा महाकवि निराला के आगे नतमस्तक था।

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