2019 के लिए यूपी में बसपा और सपा ने किया सीटों का बंटवारा! कमज़ोर कांग्रेस को किया दरकिनार

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courtesy: KhasKhabar

2019 में देश के सामने मोदी और भाजपा का विकल्प बनने की कोशिश कर रहे महागठबंधन में कांग्रेस पार्टी प्रमुख बनकर उभरेगी, यह धारणा टूट चुकी है। बताया जा रहा है कि जनसंख्या के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर बहुजन समाज पार्टी (बसपा), समाजवादी पार्टी (सपा) और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) पहले ही बंटवारा कर चुके हैं। जो खबर सामने आ रही है उसके अनुसार यूपी की कुल सीटों में से बसपा 38, सपा 37 और आरएलडी 3 सीटों पर सहमति बनाने को राजी हो गए हैं। अमेठी और रायबरेली कांग्रेस के लिए छोड़ दी गई है। जोकि क्रमश कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और सोनिया गांधी का लोकसभा क्षेत्र है।

कांग्रेस के शपथ ग्रहण में भी नहीं दिखे थे माया और अखिलेश:

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राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ देश के इन तीन राज्यों में भाजपा को सत्ता से बेदखल कर हाल ही में कांग्रेस ने सरकार बनाई। भाजपा विरोध की राजनीति करने वाले दलों के लिए एकजुटता दिखाने का यह अच्छा मौक़ा था। इस बात को ध्यान में रखते हुए तीनों राज्यों में नई सरकार के शपथ ग्रहण कार्यक्रम में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने सभी विपक्षी दलों को आमंत्रित किया था। मोदी और शाह का तोड़ तलाश रहे देशभर के अधिकांश गैर एनडीए दल इस कार्यक्रम में शामिल हुए, लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव तीनों ही राज्यों के शपथ ग्रहण समारोह से दूर रहे। कहीं न कहीं यह संकेत है, कि यूपी की सियासत के माहिर खिलाड़ी 2019 के लिए अब कांग्रेस के मातहत में नहीं रहना चाहते।

यूपी में कांग्रेस के लिए न के बराबर संभावनाएं:

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के बाद यदि किसी का प्रबल जनाधार है तो वह बसपा और सपा है। इसके बाद अनेकों छोटी-बड़ी पार्टियां ऐसी हैं, जो क्षेत्र विशेष में अपना वर्चस्व रखती है। इस तरह देश के सबसे बड़े सूबे में सबसे पुराना राजनैतिक दल कांग्रेस मुश्किल से ही चौथे पायदान पर ठहरता है। यूपी में साल 2017 के विधानसभा चुनाव पर नज़र डाले तो उस समय कांग्रेस, समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन बनाकर चुनावी मैदान में उतरी थी। हालत यह हुई कि कभी राज्य की सरकार चलाने वाली कांग्रेस पार्टी के पास अब 403 सीट वाली  विधानसभा में केवल 7 विधायक ही हैं। प्रदेश में ज़िम्मेदार नेतृत्व और बड़े चहरे की कमी कांग्रेस के लिए नासूर बन चुकी है। सूबे में लचर होते संगठन को मज़बूती देने का काम कर सके ऐसा नेता भी नज़र नहीं आता।

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