कुछ तो मज़बूरी रही होगी साहब, वरना यूं ही तो कोई आरक्षण नहीं देता

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courtesy: NationalHerald

2019 आम चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार ने सवर्णों के लिए 10 फ़ीसदी आर्थिक आरक्षण का बंदोबस्त करते हुए भाजपा के सुदृढ़ वोटबैंक को साधने का दाव खेल दिया है। देखा जाए तो भाजपा सरकार ने अपने कार्यकाल में जब गिनती के दिन शेष रहे, तब जाकर यह क़दम उठाया। कुछ दिनों पहले तक सामाजिक आधार पर पिछड़ों के लिए आरक्षण की पुरज़ोर वकालत करने वाली सरकार, जब अचानक से आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रावधान लेकर आई तो प्रतीत होता है कि अवश्य ही यह वर्तमान सरकार की मूल भावना या मंशा तो नहीं थी। संभावना है कि यकायक लिया गया इतना बड़ा निर्णय सवर्ण जनाधार को खोने के उस डर के प्रति प्रतिक्रया को दर्शाता है, जिससे शासक दल आशंकित था।

आर्थिक नीतियों के प्रति आम व मध्यम वर्ग में खासा रोष:

गौरतलब है कि नोटबंदी, रसोई गैस व ईंधन की बढ़ती कीमतें और उसके बाद जीएसटी के अव्यवस्थित संचालन ने आम व मध्यम वर्ग में मोदी सरकार के प्रति रोष पैदा करने का काम किया। व्यापारी वर्ग सरकार के कर उगाही के हथकंडों के प्रति क्रोधित नज़र आ रहा था। भाजपा सरकार के कार्यकाल का मुआयना किया जाए, तो स्पष्ट है कि आर्थिक मोर्चे पर सरकार को बहुत हद तक नाकामी ही झेलनी पड़ी है। अपनी इस असफ़लता के विरोध में उमड़ रहे जनाक्रोश को थामने के लिए आर्थिक आरक्षण के माध्यम से अपनी भूमिका को कारगर बनाने का प्रयास आखिर सरकार ने कर दिया है।

अयोध्या मामले पर संशय:

देश की हिन्दू बहुल जनसंख्या अयोध्या मामले पर मोदी सरकार की तरफ़ समाधान की उम्मीद लगाए बैठी है। अधिकांश सवर्ण तबका इसी जनसमूह में शामिल है। मामला न्यायालय में है, तो देरी भी हो सकती है। ऐसे में सरकार नहीं चाहती कि राम मंदिर फैसले के इंतज़ार में बैठी जनता उसके प्रति बेरुखी धारण कर ले। इसलिए आनन-फानन में ही सही, सरकार ने सवर्णों को फ़ायदा पहुंचाने की तरफ़ एक क़दम बढ़ाया है।

एससी/एसटी एक्ट के चलते सवर्णों की नाराज़गी:

पिछले साल भारत के सर्वोच्च न्यायलय ने एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त करते हुए इसमें कुछ प्रावधान जोड़ दिए थे। देशभर का अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग न्यायालय के इस निर्णय के बाद उग्र हो चुका था। तब सरकार न्यायपालिका पर प्रधानता दर्शाते हुए अध्यादेश लेकर आई और पुराने प्रावधानों को बहाल किया। सरकारी सक्रियता का यह दाव उलटा सरकार पर ही भारी पड़ गया था। परिणाम यह हुआ कि देशभर का सवर्ण तबका सरकार के विरोध में लामबंद हो चुका था। मोदी कब्बीनेट द्वारा मंज़ूर किया गया आर्थिक आधार पर आरक्षण सवर्णों में छाई उस नाराज़गी को दूर करने का काम करेगा, इसमें संशय नहीं है।

तीन बड़े राज्य गवा बैठना:

हाल ही में भाजपा छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश के रूप में अपने तीन बड़े सूबे गवा बैठी है। तीनों राज्यों में भाजपा को विशेषकर अगड़ी जातियों की नाराज़गी का सामना करना पड़ा है। इस बात को समझते हुए आसार है कि आर्थिक आरक्षण विधेयक लाकर भाजपा ने 2019 के लिए अपने आप को सर्वजन हितैषी बताने का प्रयास किया है।

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