सौ में नब्बे शोषित है, नब्बे भाग हमारा है; दस का शासन नब्बे पर, नहीं चलेगा, नहीं चलेगा

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photo: न्यूज़ अटैक

ये पंक्तियां स्वातंत्रयोत्तर भारत के उस अमर क्रांतिकारी समाजवादी नेता की है, जिसका जीवन शोषित वर्ग की बेहतरी का ध्येय लिए बीता। 2 फरवरी 1922 को बिहार के बोधगया के समीप कुर्था प्रखंड में कुरहरि गांव में जन्में जगदेव बाबू ने आजीवन समाज के उस तबके के लिए संघर्ष किया, जिसे जातिगत पिछड़ेपन के कारण सामंती हुक्मरानों के मातहत रहना पड़ता था। बाबू जगदेव प्रसाद ने ब्राम्हणवादी पाखण्ड पर प्रहार करते हुए कहा था-”मानववाद की क्या पहचान- ब्राम्हण, भंगी एक सामान, पुनर्जन्म और भाग्यवाद- इनसे जन्मा ब्राह्मणवाद।”

इस तरह जगदेव तत्कालीन समाज के ऊंचे तबके के दुश्मन बन बैठे। लोहिया और जेपी के समाजवाद के दौर में समाजवाद का देशीकरण करते हुए घर-घर तक पहुंचाने का काम जगदेव बाबू ने किया। समता मूलक विचारधारा के प्रबल समर्थक जगदेव बाबू ने जाति विरोधी क्रांति की शुरुआत घर से करने को कहा।

जगदेव बाबू के जीवन का अंत भी समानता की पैरवी करते हुआ:

अम्बेडकर, रामासामी पेरियार, महात्मा फूले जैसे सामाजिक समानता के पैरोकारों को आदर्श मानकर जीवन जीने वाले जगदेव बाबू 1966 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की टिकट पर कुर्था से चुनाव लड़कर बिहार विधानसभा पहुंचे। सैद्धांतिक टकरावों के चलते सालभर बाद ही जगदेव बाबू ने संसोपा छोड़कर ‘शोषित दल’ बनाया। अपने दल की स्थापना करते हुए जगदेव बाबू ने जो ऐतिहासिक भाषण दिया, वह समाजवाद के प्रति उनकी वैचारिक विराटता को दर्शाता है। ”जिस लड़ाई की बुनियाद आज मैं डाल रहा हूं, वह लम्बी और कठिन होगी। चूंकि मै एक क्रांतिकारी पार्टी का निर्माण कर रहा हूं, इसलिए इसमें आने-जाने वालों की कमी नहीं रहेगी, परन्तु इसकी धारा रुकेगी नहीं। इसमें पहली पीढ़ी के लोग मारे जाएंगे, दूसरी पीढ़ी के लोग जेल जाएंगे तथा तीसरी पीढ़ी के लोग राज करेंगे। इस तरह जीत अंततोगत्वा हमारी ही होगी।”

जगदेव बाबू केंद्र की इंदिरा सरकार के ख़िलाफ़ जेपी द्वारा चलाए गए छात्र आंदोलन को जनांदोलन में बदलना चाहते थे। इसी प्रयास में साल 1974 के सितम्बर माह की 5 तारीख को जगदेव बाबू अपने शोषित दल के कार्यकर्ताओ, सदस्यों और बिहार के समाजवादियों की एक सभा को सम्बोधित कर रहे थे। इसी बीच समाजवादियों का पुलिस बल से टकराव हो गया। जगदेव बाबू अपना भाषण देते रहे, और पुलिस ने गोली चला दी। गोली जगदेव बाबू के गले को भेद गई। इस तरह देश के धन-धरती और राजपाट में वंचितों व दबे-कुचलों के नब्बे भाग के लिए जीवन खपा देने वाले भारत लेनिन जगदेव बाबू स्वाधीन भारत में अमर शहादत को प्राप्त हुए।

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