नियमों की अनदेखी कर मारा गया अवनि को, सामने आई एनटीसीए की रिपोर्ट

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महीनेभर पहले प्रशासन द्वारा मारी गई बाघिन अवनि की ह्त्या की जांच के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के 2 सदस्यों की समिति बनाई गई थी। अब समिति ने अपनी जांच रिपोर्ट में कहा है कि फोरेस्टर मुखबिर शेख को सिर्फ बाघिन की पहचान करने को कहा गया था उसे डार्ट चलाने का काम नहीं सौंपा था। इसी के साथ डार्ट में रखी दवा भी 56 घंटे पुरानी थी, जबकि 24 घंटे से अधिक पुरानी दवा का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इसी के साथ ट्रेंकुलाइजर के उपयोग पर भी सवाल उठाया गया है।

निर्दयी है अवनि की मौत की कहानी:

एक महीने से ज़्यादा समय हो चुका है जब सारा प्रशासन एक निरीह बाघिन को मारने के लिए एकजुट हो गया था। बाघिन अवनि पर आरोप था कि दो साल में उसने 14 इंसानी ज़िन्दगियों को अपना शिकार बनाया था। दो नन्हे शावकों की मां व छह वर्षीय अवनि अब आदमखोर समझी जाने लगी थी। इसलिए स्थानीय प्रशासन द्वारा 200 लोगों की टीम बनाकर हैदराबाद से शार्प शूटर को बुलाया गया और उन्हें भेज दिया गया अवनि को ख़त्म करने के मिशन पर। आखिरकार महाराष्ट्र के यवतमाल ज़िले के बाराती के जंगलों में अवनि का गोली मारकर शिकार किया गया।

अवनि को बचाने के लिए आगे आए थे एनजीओ:

गौरतलब है कि अवनि को मारने का आदेश बॉम्बे हाईकोर्ट की तरफ से दिया गया था। अवनि के पक्षकारों ने पहले बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर बेंच में दया याचिका दायर की थी, लेकिन उच्च न्यायलय ने अपना फैंसला पलटने से इंकार कर दिया। इसके बाद ‘प्रयत्न’ और ‘सेव टाइगर’ जैसे एनजीओ ने अवनि को बचाने के लिए ‘लेट अवनि लिव’ नामक अभियान संचालित किया था। इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय तक अपील की गई थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने भी याचिका खारिज करते हुए उच्च न्यायालय के आदेश को ही कायम रखा।

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