वक़्त हमेशा एक समान नहीं होता, इसकी करवट गर्दिश से उबार भी देती है, तो खुशनुमा दौर को गर्त में धकेलने का माद्दा भी रखती है। 3 जून 1930 को कर्नाटक के मंगलोर में जन्में जॉर्ज फर्नांडीस पर यह उक्ति सटीक बैठती है। फर्नांडीज़ की गिनती देश के गरीब मज़दूरों के लिए संघर्ष करने वाले भारत के बड़े समाजवादी नेताओं में की जाती है, लेकिन साथ ही तहलका व ताबूत घोटाले के दाग और फिर पर्किंसन व अल्जाइमर की लाइलाज बीमारी उन्हें उम्रभर सलती रही। इस तरह पिछले एक दशक से अधिक समय से गुमनामी में खोया यह किरदार आज 29 जनवरी, 2019 को 89 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गया।
मज़दूरों के हक़/अधिकारों का मसीहा:
पादरी बनने की ट्रेनिंग बीच में छोड़कर युवावस्था में ही जॉर्ज फर्नांडीस बम्बई चले आए थे। यहां पत्रकारिता की एक नौकरी पकड़ ली। बकौल जॉर्ज, बम्बई में उन दिनों चौपाटी की बेंच पर सोया करते थे। इस दौरान मज़दूरों से संपर्क बढ़ा, ट्रेड यूनियन के आंदोलनों में भागीदारी करते गए। समाजवाद के पुरोधा, राम मनोहर लोहिया से खासा प्रभावित हुए। घुंघराले बाल, पतला चेहरा, खद्दर का कुर्ता, झोला लटकाए, अपनी घिसी हुई चप्पलों के साथ समाजवादी मोर्चे में कदमताल करने वाले फर्नांडीज़ कच्ची बस्तियों के रहवासी, मज़दूर और कामगार तबके के मसीहा बन चुके थे।
देश की सबसे बड़ी ऐतिहासिक रेल हड़ताल के अगुआ बने:
1950 तक जॉर्ज फर्नांडीस बम्बई टैक्सी ड्राइवर यूनियन के अध्यक्ष बन गए थे। साल 1967 में देश की चौथी लोकसभा के चुनाव में दक्षिण बम्बई सीट से बड़े कांग्रेसी नेता इसके पाटिल को हराकर लोकसभा में पहुंचे। 1970 के दशक की बात है, जॉर्ज इंडियन रेलवे कर्मचारी यूनियन के मुखिया बने। उन दिनों देशभर में मज़दूर व कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर संगठित होते थे। साल 1974 में असंतुष्ट रेलवे कर्मचारियों का नेतृत्व कर देश की सबसे बड़ी हड़ताल का आयोजन किया। रेलवे के करीब 14 लाख कर्मचारी काम पर नहीं गए, कई दिनों तक रेलवे का चक्का जाम हो गया। ट्रांसपोर्ट वर्कर्स, बिजली और अन्य विभागों के मज़दूरों से आंदोलन को समर्थन मिला। आज़ाद भारत के इतिहास की सबसे बड़ी हड़ताल के सामने इंदिरा सरकार भयभीत हो गई। सेना और पुलिसबल का प्रयोग कर हड़ताली कर्मचारियों को खदेड़ा गया। 30 हज़ार से अधिक लोगों को जेल में बंद कर दिया। इस तरह सरकारी नीतियों के ख़िलाफ़ भारत भर के मेहनतकश मज़दूर वर्ग में सामूहिक आक्रोश उमड़ पड़ा। इसके बाद जेपी की अगुवाई में बिहार से शुरू हुआ छात्र आंदोलन, जनविद्रोह में बदल गया। परिणति हुई कि इंदिरा सरकार ने 25 जून की रात आपातकाल लागू कर जेपी समेत तमाम विपक्षी नेताओं को जेलखाने में डाल दिया। फर्नांडीस भूमिगत होकर उस दौर में संघर्षरत रहे।
आपातकाल के बाद जेल में रहते हुए लड़ा चुनाव:
आपातकाल के दौरान जब सभी मुख्य विपक्षी नेता नज़रबंद किए जा चुके थे, फर्नांडीस तब भी बाहर थे। बाद में बड़ौदा डायनामाइट केस में गिरफ्तार कर लिए गए। 1977 का चुनाव जेल में रहते हुए ही लड़ा, और रिकॉर्ड मतों से जीतकर बिहार के मुजफ़्फ़रनगर से लोकसभा पहुंचे। मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी जनता पार्टी की सरकार में उद्योग मंत्री बनाए गए। जनता पार्टी की सरकार कार्यकाल के बीच में ही ढह चुकी थी। आगे चलकर फर्नांडीस जनता दल से जुड़े, फिर 1994 में समता पार्टी बनाई।
कुल 9 बार सांसद चुने गए फर्नांडीस, वीपी सिंह सरकार में रेल मंत्री और वाजपेयी सरकार में रक्षा मंत्री बनाए गए। रक्षा मंत्री रहने के दौरान 18 बार सियाचीन का दौरा किया, लेकिन भ्रष्टाचार के कई आरोप झेलने पड़े। इसी के साथ निजी जीवन भी विवादों से घिर चुका था। 2010 में राजनीति से पूरी तरह दूर हो गए। फिर अल्जाइमर से पीड़ित जॉर्ज हमेशा की तरह बगैर किसी लाइम लाइट और औपचारिकता के इस दुनिया को छोड़ गए।
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