पिछले कई वर्षों से राजस्थान के शिक्षित युवाओं को प्रदेश में व्यवस्था की लचरता एवं मनमानी से जूझना पड़ रहा है। राज्य में होने वाली अधिकतर भर्ती प्रक्रियाएं निस्तेजता एवं निष्क्रियता के बदनुमे दौर से गुजर रही है, ऐसे में बड़े सपने पाले बैठे युवावर्ग को मानसिक परेशानी उठानी पड़ रही है। ठीक यहीं हाल राजस्थान में अधिकारी बनने वाले आरएएस 2016 के सफ़ल अभ्यर्थियों का है। परीक्षा हो चुकी, अंतिम परिणाम आए 15 महीने हो चुके, लेकिन नियुक्ति है, कि सरकार देती ही नहीं। अपनी नियुक्ति के इसी अधिकार को लेकर पिछले कई दिनों से जनवरी की शीतलहर और कंपकंपाती सर्दी में राजस्थान विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर ये अभ्यर्थी हड़ताल पर बैठे हैं। प्रदेश के हुक्मरानों से आस लिए कि सरकार चुनाव ख़त्म भी हो गए है, चुनाव आने भी वाले हैं; आपकी सियासत आबाद रहे, लेकिन हमारी भी तो सुनो।
2016 की परीक्षा, और 2019 में नियुक्ति नहीं, बिना अधिकारियों के कैसे चलाएंगे प्रशासन:
विदित हो कि, आरएएस-2016 के लिए नोटिफिकेशन उसी वर्ष जारी किया गया था। प्रारंभिक व मुख्य परीक्षा के बाद साक्षात्कार हुआ। आखिरकार 17 अक्टूबर 2017 को परीक्षा का अंतिम परिणाम आ गया। अब सफ़ल हुए अभ्यर्थियों की खुशियों का कोई ठिकाना नहीं था। सालों की मेहनत के बाद न्यायालय में हिचकौले खाती बोझिल परीक्षा प्रणाली के से की गई जुझारुता के बाद अब उम्मीद थी कि जल्द नियुक्ति भी हो जाएगी। अधिकारी बनने की ख़ुशी में अनेकों अभ्यर्थी ऐसे थे, जिन्होनें अपनी पहले की नौकरी से भी त्यागपत्र दे दिया, और इंतज़ार करने लगे भर्ती का। लेकिन महीने पर महीने और फिर साल बीत गए, न शासन गंभीर हुआ न प्रशासन इच्छुक दिखा लेकिन अभ्यर्थी ज़रूर व्यथित हो गए। ऐसे में समझ नहीं आता कि आखिर सरकार बगैर अधिकारियों के प्रशासन चलाएगी तो कैसे!!
पुलिस सत्यापन, मेडिकल जांच सब पूरी, बस नियुक्ति की दरकार:
गौरतलब है कि आरएएस 2016 में चयनित इन सभी अभ्यर्थियों की चिकित्सकीय जांच और पुलिस सत्यापन की प्रक्रिया सम्पूर्ण हो चुकी है। आरपीएससी ने डिपार्टमेंट ऑफ़ पर्सोनेल (कार्मिक विभाग) को अनुशंसा भी भेज दी है। बावजूद इसके आज 15 महीने से अधिक हो जाने के बाद भी इन अभ्यर्थियों की नियुक्ति नहीं हो पाई है। इन सफ़ल अभ्यर्थियों का कहना है कि परिजन, रिश्तेदार, घर आए परिचित अक्सर सवाल करते हैं कि पास हो गए, लेकिन भर्ती कब होगी? उस समय चुप्पी साधे मुंह के आगे, प्रताड़ित मन अक्सर ही नाकाम सरकारी प्रणाली को कोसने पर उतारू हो जाता है।
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