तो अब यह घोषित हो चुका है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी 2019 के आम चुनाव में अमेठी के साथ ही केरल राज्य की वायनाड लोकसभा से दावेदारी पेश करेंगे। वायनाड लोकसभा कांग्रेस पार्टी के लिए सबसे सुरक्षित सीटों में मानी जाती है। 2009 में गठित इस सीट पर राज्य में वाम वर्चस्व के दौर में भी दो बार कांग्रेसी उम्मीदवार एमआई शनवास ने ने जीत हासिल की है। इसी के साथ देखा जाए तो अमेठी में स्मृति ईरानी की सक्रियता ने राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं। ऐसे में 2004 से लगातार तीन बार उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा से सांसद रहे राहुल गांधी का दूसरी किसी सीट पर विकल्प तलाशने के दो मुख्य कारण हैं।
वायनाड के सहारे पूरा दक्षिण साधने की तैयारी में राहुल:
गौरतलब है कि केरल की वायनाड सीट पर राहुल गांधी को चुनावी उम्मीदवार बनाने की पेशकश सबसे पहले केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी की तरफ से की गई थी। राहुल गांधी को लेकर केरल के युवाओं के बीच सकारात्मकता भी इसका कारण है, कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस पार्टी के महासचिव ओमान चांडी ने राहुल गांधी के इस सीट से उम्मीदवारी पेश करने का आग्रह किया था। इसके बाद वायनाड पर कांग्रेस और राहुल की दिलचस्पी के मायने तो यही कहते हैं कि दक्षिण भारत की इस प्रमुख सीट से चुनाव लड़कर कांग्रेस दक्षिण के राज्यों को साधने की महत्वाकांक्षा पूरी करना चाहती है। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना हैं कि चूंकि राहुल गांधी, मोदी सरकार की खिलाफत में विपक्ष के बड़े चेहरे हैं, ऐसे में दक्षिण भारत की सीट से चुनाव लड़ने का मतलब है कि दक्षिण के पांच बड़े राज्यों तमिलनाडु, केरल, आंध्रा प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक में कांग्रेस की प्रभावी पहुंच में बढ़ोतरी करना। ये वो राज्य हैं जहां कांग्रेस की टक्कर भाजपा से न होकर स्थानीय दलों से होगी, ऐसे में कांग्रेस पार्टी यहां से तुलनात्मक रूप से बढ़त बनाने की सोच रही है।
अमेठी में स्मृति ईरानी की सक्रियता ने कांग्रेस के लिए खड़ी कर दी मुश्किलें:
उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट ने अब तक देश के 13 आम चुनाव में भागीदारी की है। 11 बार यहां से कांग्रेसी उम्मीदवार ने जीत दर्ज़ की है। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी कई बार इस सीट पर बड़े अंतर से विजय होकर लोकसभा पहुंचे हैं। लेकिन बात 2019 के चुनाव की करें तो केंद्रीय मंत्री और भाजपा की लोकप्रिय नेत्री स्मृति ईरानी राहुल गांधी को कड़ी चुनौती दे रही हैं। पिछले पांच वर्षों में क्षेत्र के अंदर भाजपा-आरएसएस का कैडर मज़बूत हुआ है। स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ताओं को भी चुनावों में मौक़ा व बड़ी ज़िम्मेदारी न मिलने से नाराज़गी होना बताया जा रहा है। हालांकि 2014 में पिछली बार स्मृति ईरानी, राहुल गांधी के सामने यह सीट हार गई थी लेकिन स्मृति ने काबिल-ए-गौर जनमत हासिल किया था। स्मृति उसके बाद भी सक्रिय रही और समय-समय पर अमेठी में जनसम्पर्क करती रही। ऐसे में संभावना है कि इस दफ़ा स्मृति ईरानी अमेठी से तीन बार के सांसद राहुल गांधी को उन्हीं के गढ़ में मात देते हुए मुक़ाबला अपने तरफ़ कर पाने में सफ़ल हो सकती हैं। वही राहुल गांधी चाहकर भी अमेठी से किनारा नहीं कर सकते, इसका कारण उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का अकेले दम पर चुनाव लड़ना है। ऐसे में कांग्रेस मध्य भारत और दक्षिण भारत में से किसी एक को तरजीह देना नहीं चाहती।