2019 का लोकसभा चुनाव दहलीज़ पर है। सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) फिर एक बार प्रधानमन्त्री पद के लिए नरेंद्र मोदी को लेकर आश्वस्त है। तो वहीं विपक्षी खेमे का कोई एक चेहरा, जो नेतृत्व की दारोमदारी के लिए उभरकर सामने आता है, तो वह है भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी।
राहुल गांधी होने के मायने हैं, वह शख्स होना जो तमाम तरह की नकारात्मक धारणा-अवधारणाओं के बीच सत्ता विरोध की विपक्षी सकारात्मकता को लेकर चल रहा हो। इस लेख में हम बात करते हैं, नकारात्मकताएं जो राहुल के किरदार को लेकर है और सकारात्मकता जो उनकी कार्यशैली में झलकती है।
आमजन के बीच अस्वीकार्यता:
सर्वप्रमुख कारण जो राहुल गांधी को भारत का अगला प्रधानमन्त्री मानने में बाधक है, वह है देश के आम जनमानस में इस चेहरे को लेकर अस्वीकार्यता का भाव। देश में मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग है, जिनके लिए राहुल गांधी का मतलब महज़ एक कमज़ोर मानसिकता, बेवकूफी और बचकानापन बनकर रह गया है। शायद यहीं कारण है कि लोकतान्त्रिक राजनीति में कर्ता-धर्ता, जनता-जनार्दन को राहुल गांधी के वायदों व भाषणों में नाउम्मीदी और नाकारापन से ज़्यादा कुछ नज़र नहीं आता।
शासन संचालन के अनुभव की कमी:
वैसे देखा जाए तो राहुल गांधी करीब 15 सालों से उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा से सांसद के तौर पर चुने जा रहे है। बावजूद इसके राहुल को अभी तक कोई बड़ी ज़िम्मेदारी राजव्यवस्था में नहीं दी गई है। राहुल कांग्रेस पार्टी के अगुआ भले ही हो, लेकिन आज तक राज्य अथवा राष्ट्रीय स्तर पर किसी मंत्रालय का जिम्मा राहुल गांधी को नहीं मिल सका है। मतलब साफ़ है कि प्रधानमन्त्री मोदी के पास जनता के सामने रखने के लिए जो गुजरात मॉडल था, वैसा कोई मॉडल या उदाहरण राहुल पेश नहीं कर सकते।
वंशवाद की अमिट छाप:
बेशक, गांधी-नेहरू परिवार से आने का सीधा लाभ, राहुल गांधी को प्रत्यक्ष तौर पर राजनीति में प्रवेश द्वारा मिला है। बगैर किसी योग्यता के उन्हें देश के सबसे प्राचीन व सशक्त राजनैतिक दल की सरदारी भी मिली है। बावजूद इस विलासित और सहज मिली दारोमदारी के, राहुल जनभावनाओं को अपनी तरफ़ कर पाने में इतने कामयाब नहीं हो सके है। यहां कमी राहुंल गांधी की काबीलियत की भी हो सकती है, कि वे उस वर्चस्व को बरक़रार नहीं रख पाए। फिर भी निश्चित ही वंशवाद का जो स्थायी टैग राहुल और कांग्रेस पर लग चुका है, उसका खासा नुकसान राहुल गांधी को उठाना पड़ा है। लोकतान्त्रिक व्यवस्था में सत्ता संभालने के औहदे पर एक ही परिवार की पैठ को लेकर देश का आमजन अक्सर ही सवाल उठाता रहा है।
आक्रामकता के साथ लगातार विरोध ही सकारात्मकता:
राहुल गांधी की एक खासियत जो देश के युवा, महिला और किसान वर्ग को उनकी ओर आकर्षित करती है, वह विपक्ष में रहकर राहुल की आक्रामकता और सत्ता पक्ष का विरोध है। गौरतलब है कि सत्तासीन भाजपा और प्रधानमन्त्री मोदी की नीतियों का जितना मुखर विरोध राहुल गांधी ने किया है, उस स्तर तक कोई और विपक्षी नेता पहुंच पाने में नाकाम रहा है। इसी के साथ यह भी स्पष्ट है कि पिछले डेढ़ साल में राहुल गांधी की इस खूबी में अभूतपूर्व अभिवृद्धि हुई है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेसी करिश्मे के सामने टूटा भाजपाई तिलिस्म इसका परिचायक है।
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