देश के 5 करोड़ गरीब परिवारों को 72 हज़ार रुपये सालाना देने का वादा: कांग्रेस का घोषणा पत्र या जनमत के लिए छल पत्र!!

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image courtesy: DownToEarth

भारत की केंद्रीय सत्ता पर अधिपत्य की चुनावी दौड़ शुरू हो चुकी है। अगले दो महीने के अंदर देशभर में चुनाव संपन्न होकर परिणाम भी सामने आ जाएंगे। चाहे सत्ता से सटा हुआ राजनैतिक दल हो या राजशाही पर नज़र गढ़ाए विपक्षी; फिलहाल तो सभी की कोशिश जैसे-तैसे हो सके जनमत का मन मोहने की है। यही कारण है कि अपनी ख़ास तरह की विचारधारा से अपने समर्थकों को बांधे रखते हुए केंद्र सरकार कार्यकाल के अंतिम समय में आर्थिक आरक्षण विधेयक और नागरिकता संशोधन बिल संसद में लेकर आई थी।

इसी तरह अब विपक्ष भी जनता के सामने विकल्प बनने की इच्छा लिए, मौजूदा सरकार की जी भरकर आलोचना करने के साथ ही अपने दृष्टिकोण, अपनी नीति को सर्वोत्कृष्ट बता खुलेआम प्रदर्शन करने की हालत में है। इस कड़ी में मुख्य विपक्षी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस न्यूनतम आमदनी गारंटी की अवधारणा लेकर सामने आई है। कांग्रेस दावा ठोक रही है कि सरकार में आने पर वह न्यूनतम आमदनी गारंटी द्वारा देश के 20 फीसद सबसे गरीब लोगों को 72000 रुपये प्रति महीना उपलब्ध कराएगी। इन 20 प्रतिशत गरीब लोगों के दायरे में देश के 5 करोड़ परिवारों और 25 करोड़ जनता को लाभान्वित करने की बात कांग्रेस पार्टी कर रही है।

5 करोड़ बैंक खातों में 72000 रुपये प्रत्येक में हर साल पहुंचाने का मतलब समझिए:

कांग्रेस पार्टी घोषणा कर चुकी है कि वह भारत के हर व्यक्ति के लिए न्यूनतम आमदनी सुनिश्चित करेगी। इसकी सीमा भी 12 हज़ार रुपये प्रति महीने निर्धारित कर दी है। पार्टी का कहना है कि यदि किसी की आमदनी 12000 रुपये प्रति महीने से कम है तो उसे 12000 रुपये तक पहुंचाया जाएगा। इसके अंतर्गत देश के 5 करोड़ परिवारों को 72000 रुपये हर साल दिए जाएंगे। सीधा सा मतलब है कि 5 करोड़ बैंक खातों में 72000 रुपये प्रत्येक खाते में हर साल सरकार की तरफ से डाले जाएंगे। अब ज़रा इस रकम का हिसाब देखिए: 72000 * 50000000 = 3600000000000 रुपये। अर्थ सीधा और साफ़ है, कांग्रेस पार्टी वादा कर रही है कि यदि वह सरकार में आती है तो हर साल 36 ख़रब रुपये देश की 20 फ़ीसदी जनता को दिए जाएंगे।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कहते है कि दुनिया में कही भी ऐसी योजना लागू नहीं हुई। राहुल का यह कहना जायज़ भी है, क्योंकि यह जो रकम सामने आती है, चकित करने वाली है, विश्वास के योग्य नहीं कि कोई सरकार, जनता को इतनी बड़ी रकम बिना किसी नफ़े के यूं ही बांट सकती है!!

घोषणा तो कर दी, सवाल है कि सत्ता में आ गए तो घोषणा पूरी कैसे होगी!:

सरकार कटौती किस खर्चे में करेगी? कैसे करेगी? एक बार की बात नहीं है हर साल 36 ख़रब रुपये देने हैं। ये पैसा कहां से आएगा, पूंछे जाने पर राहुल गांधी का बड़ा अजीब तर्क सामने आता है। वे कहते है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने देश के अमीरों के 31 ख़रब रुपये माफ़ कर दिए, तो गरीबों के लिए 36 ख़रब क्यों नहीं दिए जा सकते!! बात बचकानी लगाती है; क्या मोदी सरकार ने वास्तव में देश के उद्योगपतियों के 31 ख़रब रुपये माफ़ किए हैं, और क्या हर साल माफ़ कर रही है!! हास्यास्पद है कि कांग्रेस महज़ अपने आरोप के आधार पर नई स्कीम का खाका ले आई है। कांग्रेस पार्टी यह भी कहती है कि यदि सरकार में वो आती है, तो जीएसटी को सरल किया जाएगा, टैक्स की कम दर वसूली जाएगी। फिर ऐसी सरकार ये 36 ख़रब लाएगी कहां से? कांग्रेस, पार्टी फंड में से खर्च करने के विचार में शायद ही होगी। क्या आयकर या अन्य किसी तरह के कर आमजन पर थोपे जाएंगे? क्या देश के उद्योगपतियों, व्यापारियों को बिल्कुल लोन नहीं दिया जाएगा? ऐसी स्थिति में तो देश में निवेश की संभावनाएं ही ख़त्म हो जाएगी, न उद्योग बढ़ेंगें, न रोजगार उत्पन्न होंगे, न तरक्की होगी। यहां मानते हैं कि निश्चित तौर पर वह तरक्की कोई मायने नहीं रखती जहां समाज के एक हिस्से को हाशिए पर छोड़ दिया जाए। लेकिन कांग्रेस पार्टी किस स्रोत के ज़रिए हर वर्ष 36 ख़रब रूपए खर्चने जा रही है यह समझ से परे है। ऐसे तमाम तर्कों के आधार पर प्रबल होती इस संभावना से कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस का घोषणा पत्र देश के जनमत के लिए छल पत्र साबित होगा।

आज न्यूनतम आमदनी गारंटी के स्वरूप की घोषणा करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा था कि ”मनरेगा योजना के तहत देश के 14 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया था, यह योजना 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालेगी।”

यहां बेहतर होता यदि कांग्रेस मनरेगा का विस्तारवादी रूप सामने लेकर आती या देश में रोजगार की बेहतर परिस्थितियां उपलब्ध करवाने की रूपरेखा पर विचार करती। दिन के 10 – 12 घंटे खपाकर 3 – 4 हज़ार रुपया प्रति महीना या इससे कम पर गुजर-बसर करने वाले तबके के हित में पूरे देश के निजी और सरकारी संस्थानों में न्यूनतम मज़दूरी निर्धारित करती। राजनीति को समझना होगा कि आर्थिक कमज़ोरी के कारण गरीब नज़र आने वाला व्यक्ति भी अपने उसूल, अपना ज़मीर बचाए रखने का हौंसला लिए हुए होता है। ऐसे में मनचाही सियासी अवधारणा के आसमान पर तैयार की गई बदनुमा घोषणा से गरीब को कुछ मिलना तो दूर की कौड़ी है, यहां तो उसके सपनों, उसके लोकतांत्रिक अधिकारों पर भी सेंधमारी करने की फ़िराक में सियासत नज़र आती है।

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