राजनैतिक नफ़े-नुकसान का सबरीमाला, क्या भाजपा को केरल में मिलेगी मज़बूती?

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posted by @AmitShah.Official

केरल में भगवान अय्यप्पन से जुडी मान्यताओं को लेकर सबरीमाला मंदिर में प्रतिबंधित महिला प्रवेश पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने हर आयु वर्ग की महिलाओं को सबरीमाला में जाने की अनुमति दे दी। बावजूद इसके पूरे केरल में पुरुष अय्यप्पा भक्तों द्वारा महिलाओं को मंदिर में जाने से रोका जा रहा है। सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना करते हुए हिंसक प्रदर्शन, हंगामा व झड़पें की जा रही है। केरल में मचे इस उपद्रव का बारीकी से आंकलन करें तो नज़र आता है कि यह महज़ धार्मिक मान्यताओं और संवैधानिक अधिकारों के बीच की लड़ाई नहीं है। राजनीतिक स्वार्थसिद्धि की लालसा इस पूरे मसले में उत्प्रेरक की तरह काम कर रही है। हिन्दू दक्षिणपंथियों व अय्यप्पन भक्तों का पुरज़ोर समर्थन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा किया जा रहा है तो समानता के लिए लड़ रही महिलाओं का समर्थन राज्य में सत्तारूढ़ माकपा समेत अन्य वाम दलों द्वारा किया जा रहा है।

कांग्रेस उदासीन भूमिका में:

सबरीमाला में महिला प्रवेश के पूरे विषय पर कांग्रेस पार्टी अभी तक उदासीन भूमिका में नज़र आई है। पार्टी ने खुले तौर पर किसी भी पक्ष का समर्थन नहीं किया है। केरल में अच्छा-खासा प्रभाव रखने वाली कांग्रेस के लिए यह प्रवृत्ति भले ही उसका वोटबैंक कम न करे, लेकिन इस निष्क्रियता से पार्टी के पक्ष में जनमत बढ़ने के आसार भी नहीं है।

सबरीमाला की आड़ में भाजपा की मज़बूत होती ज़मीन:

इस समय देशभर में ज्वलंत बने हुए सबरीमाला मसले का राजनैतिक लाभ यदि किसी दल को मिलता है, तो निश्चित तौर पर भाजपा ही उसकी हक़दार होगी। इस विषय पर भाजपा बड़ी ही सावधानी से आगे बढ़ रही है। केरल में जहां भाजपा पूरी तरह से शीर्ष अदालत के निर्णय के विरोध में उतर आई है, तो वहीं राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी इसके विषय को उठाने से बच रही है। कारण स्पष्ट है, भाजपा यह बखूबी जानती है कि भारत के इस विकसित राज्य में उसका अधिक जनाधार नहीं है। इसलिए सबरीमाला के विषय पर बहुसंख्यक हिन्दू समुदाय व अय्यप्पा भक्तों की तरफदारी करते हुए वह अपनी छाप छोड़ सकती है। सबरीमाला में प्रवेश के लिए मशक्कत कर रही महिलाएं शिक्षित वर्ग से आती है, जोकि केरल में कभी भाजपा का वोटबैंक रहा ही नहीं। ऐसे में अय्यप्पा देवस्थान में महिलाओं के प्रवेश का विरोध करने से आरएसएस व भाजपा को वहां राजनैतिक नुकसान होने के आसार नहीं। इसी के साथ केंद्र स्तर पर इस मुद्दे को उठाकर, भाजपा अपने आप को महिला अधिकार विरोधी भी नहीं दर्शाना चाहती।

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