विपक्ष के वॉकआउट के बीच लोकसभा में दूसरी बार पास हुआ तीन तलाक़ को अपराध बनाने वाला विधेयक, राज्यसभा अब भी चुनौती

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एक बार में तीन तलाक़ बोलकर मुस्लिम समुदाय में तलाक़ देने की प्रक्रिया ‘तलाक़-ए-बिद्दत’ पर रोक लगाने के लिए भारत सरकार की तरफ से लाया गया ‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक-2018′ गुरुवार को दूसरी बार लोकसभा में पारित हो चुका है। कुल 256 में से विधेयक के पक्ष में 245 व विरोध में 11 सांसदों ने वोट किया। गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायलय द्वारा तीन तलाक़ को अपराध की श्रेणी में रखने के बाद इससे पहले भी लोकसभा में तीन तलाक़ के विरोध में विधेयक पारित हो चुका है, लेकिन विपक्ष द्वारा प्रवर समिति की मांग पर सहमति नहीं बनने के कारण राज्यसभा में पारित नहीं हो पाया था। इस बार भी ठीक वैसी ही स्थिति है। अब इसी सत्र में बिल को राज्यसभा में पारित करवाकर क़ानून की शक्ल देने की ज़िम्मेदारी अभी सरकार पर बनी हुई है।

कांग्रेस समेत विपक्ष ने किया सदन से वॉकआउट:

जब यह बिल लोकसभा में पेश हुआ तो कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने बिल के कुछ प्रावधानों पर असहमति जताते हुए, इसे संसदीय प्रवर समिति में भेजने की मांग की। चूँकि एक बार पहले भी यह बिल निचले सदन में पारित हो चुका है, अतः स्पीकर ने विपक्ष की यह मांग खारिज कर दी। इसके बाद आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन, एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी और बीजद के भर्तृहरि मेहताब ने बिल से सम्बंधित 13 संशोधन विचार के लिए सदन में रखे। इन सभी संशोधनों को सदन ने अस्वीकार कर दिया। विपक्ष ने 11 संशोधनों पर मत विभाजन का प्रस्ताव रखा, लेकिन भारी मतों से इस प्रस्ताव को भी खारिज कर दिया गया। इसके बाद कांग्रेस, एआईएडीएमके, टीएमसी सहित कई विपक्षी राजनैतिक दलों ने सदन से वॉकआउट कर दिया।

राज्यसभा में बहुमत नहीं, समिति का गठन ही एकमात्र विकल्प:

उल्लेखनीय है कि संसद के उच्च सदन में सरकार फिलहाल बहुमत की स्थिति में नहीं है। भाजपा के 73 सांसदों के साथ एनडीए के अन्य घटक दलों को भी मिला लिया जाए तो सदस्यों की संख्या बहुमत तक नहीं पहुंच पा रही। ऐसे में इस बिल के विषय पर प्रवर समिति के गठन की विपक्ष द्वारा उठाई जा रही मांग मान लेना ही विधेयक को विधि/क़ानून बनाने का एकमात्र विकल्प बचता है।

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