सवर्ण आरक्षण पर मोदी कैबिनेट के फैसले को विपक्षी दलों का समर्थन, मज़बूरी या महत्वाकांक्षा!!

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posted by @narendramodi

मोदी कैबिनेट द्वारा आर्थिक पिछड़े सवर्णों के लिए मंज़ूर किए गए 10 फ़ीसदी आरक्षण विषय पर लगभग तमाम विपक्षी दल सरकार के इस क़दम का समर्थन करते दिख रहे हैं। कांग्रेस, बसपा व आम आदमी पार्टी सरीखे मुख्य विपक्षी दलों ने भी स्पष्ट कर दिया कि आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों के उत्थान के लिए वे सरकार के क़दम को समर्थन देंगे। बावजूद इसके सरकार की मंशा पर सवाल उठाया जा रहा है कि क्या चुनावों से ठीक एन मौके पहले यह सरकार का राजनैतिक नफ़े के लिए खेला गया कोई दाव है! या सचमुच सरकार की मंशा राजनीति से इतर है!

आर्थिक आधार पर आरक्षण ऐसा मसला है जिसकी मांग समय-समय पर उठती रही है। पहले भी सरकारों ने इस विषय को उठाया है, लेकिन संविधान एवं न्यायपालिका की सीमा से परे होने के कारण यह लागू नहीं हो पाया। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर सभी राजनैतिक दल कभी न कभी इसके पक्षधर रहे हैं। इस समय भी मोदी सरकार और भाजपा को घेरने के लिए विपक्ष चाहे जितना उतारू हो, लेकिन इस मुद्दे पर सरकार का विरोध कर आर्थिक कमज़ोर, मध्यम व निम्न वर्ग के लिए खलनायक नहीं बनना चाहता। अब तक शायद ही कभी विपक्षी दलों ने इतनी मुखरता से आर्थिक आरक्षण की मांग की हो, लेकिन आज जब सत्ता पक्ष ने अपना दाव चल दिया, तब सभी अपने आप को सवर्ण और गरीब हितैषी बताने में लगे हैं। ऐसे में लगता है कि सरकार को समर्थन देना विपक्ष की मज़बूरी भी है तो, सवर्णों को साधने की महत्वाकांक्षा भी।

क्योंकि अन्य वर्गों को भी नहीं परेशानी:

आर्थिक आरक्षण के इस विषय को 2019 के आम चुनाव से पहले मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। यह मसला ऐसा है, जिसके विरोध में जाकर कोई विपक्षी दल सीधे सवर्णों का विरोध मोल लेना नहीं चाहता। अनुमानित आंकड़ों को माना जाए तो देश में करीब 20 प्रतिशत सवर्ण, 50 फ़ीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग और करीब 30 फ़ीसदी जनसंख्या अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग में सम्मिलित हैं। नौकरियों और शिक्षा में फिलहाल 49.5 प्रतिशत आरक्षित कोटा है। तथा सर्वोच्च न्यायलय के अनुसार आरक्षण 50 फ़ीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए। चूँकि सरकार किसी अन्य आरक्षित वर्ग के आरक्षण में कटौती करके सवर्ण कोटे का बंदोबस्त नहीं करने वाली। ऐसे में स्पष्ट है कि सरकार को इस 50 फ़ीसदी की सीमा को 60 प्रतिशत तक ले जाना होगा। इस तरह के अधिनिर्णय से जहां तक सवर्ण खुश हो जाएंगे, साथ ही अन्य वर्ग भी नाराज़ नहीं होंगे।

संविधान संशोधन ज़रूरी:

भारत के संवैधानिक प्रावधानों के तहत अनुच्छेद 15 एवं 16 में सामाजिक आधार पर जातीय आरक्षण के उपबंध तो हैं, लेकिन आर्थिक आरक्षण का प्रावधान अभी तक हमारे संविधान में नहीं है। ऐसे में संविधान संशोधन करना अनिवार्य है। संशोधन विधेयक सदन में दो तिहाई बहुमत से पारित होना अनिवार्य है।

समर्थन तो दिया लेकिन व्यंग भी कसा:

मोदी कैबिनेट के इस प्रस्ताव को हालांकि विपक्ष ने समर्थन तो दिया है, लेकिन इसी के साथ सरकार को नसीहत देने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि सरकार सदन में बिल लाए और इसे पारित करवाने के लिए विशेष सत्र बुलाए, अन्यथा यह एक राजनीतिक स्टंट समझा जाएगा। ठीक यहीं बात बसपा सुप्रीमो मायावती ने कही। इसी तरह कांग्रेस की तरफ़ से पार्टी प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि सरकार को 4 वर्ष 8 महीने हो चुके हैं। अब जब चुनाव में 100 से भी कम दिन शेष हैं, तो ऐसे समय इस तरह का प्रस्ताव लाना सरकार की नीयत में खोट दर्शाता है।

आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर कहा कि-

”अगर 15 फ़ीसदी आबादी को 10% आरक्षण तो फिर 85 फ़ीसदी आबादी को 90% आरक्षण हर हाल में मिलना चाहिए। 10% आरक्षण किस आयोग और सर्वेक्षण की रिपोर्ट के आधार पर दिया जा रहा है? सरकार विस्तार से बतायें।”

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