विपक्ष के विरोध के बीच लोकसभा में पास हुआ ‘नागरिकता संशोधन बिल’, समझिए बिल के सभी पहलुओं को

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विपक्ष के भारी विरोध के बाद भी संसद के शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन नागरिकता संशोधन विधेयक लोकसभा में पास हो चुका है। यह बिल नागरिकता क़ानून-1955 में संशोधन करता है। पूर्ववर्ती क़ानून के तहत जहां कोई विदेशी व्यक्ति बगैर दस्तावेजों, वीज़ा एवं पासपोर्ट के भारत में नहीं रह सकता था तथा भारत की नागरिकता के लिए आवेदन करने के लिए कम से कम 11 वर्ष भारत में रहना पड़ता था, वही अब नए संशोधित बिल के प्रावधानों के अनुसार अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिन्दू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन एवं पारसी अल्पसंख्यक बगैर दस्तावेजों के भारत में 6 वर्ष तक रहने के बाद यहां की नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं।

विपक्ष का वॉक आउट, बिल के विरोध में असम बंद:

गौरतलब है कि पड़ौसी राष्ट्रों के हिन्दू अल्पसंख्यकों को नागरिकता के नियमों में ढील देने की बात सत्ताधारी भाजपा ने 2014 के आम चुनाव में अपने घोषणा पत्र में उल्लेखित की थी। इसके तहत पहले भी सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक सदन में ला चुकी है। इस बिल का असम राज्य में पुरज़ोर विरोध किया जा रहा है। असम गण परिषद् ने इस बिल के विरोध में असम की भाजपा सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। असम के विभिन्न छात्र संगठन, अनेकों स्थानीय दल एवं संगठन इस बिल के विरोध में उतर आए हैं। विपक्ष की तरफ़ से असम बंद का आह्वान किया गया है।

आज लोकसभा में भी कांग्रेस, ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट, माकपा, तृणमूल कांग्रेस व भाजपा की सहयोगी असम गण परिषद् तथा शिवसेना आदि दलों ने बिल का विरोध किया था। कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने बिल के प्रति विरोध दर्शाने के लिए सदन से वॉक आउट किया। बिल के विरोध का कारण असम की संस्कृति, और वहां की अनोखी पहचान के संरक्षण के साथ ही धार्मिक पहचान को नागरिकता का आधार बनाना रहा। गौरतलब है कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद-14 धर्म के आधार पर समानता का मौलिक अधिकार प्रदत्त करता है।

गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि असम की संस्कृति का संरक्षण केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी:

नागरिकता संशोधन विधेयक पर लोकसभा में बोलते हुए केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि असम की संस्कृति और पहचान का संरक्षण करना केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी है।

गृहमंत्री ने कहा कि यह बिल केवल असम के लिए नहीं है। शरणार्थियों का भार सिर्फ असम ही सहन नहीं करेगा, बल्कि पूरा देश एकजुट होकर अफगानिस्तान, पाकिस्तान व बांग्लादेश में विकट परिस्थितियों में रहने को मज़बूर अल्पसंख्यक शरणार्थियों को बेहतर जीवन देने का काम करेगा। इसके तहत भारत की पश्चिमी सीमा से हिन्दू, सिख, पारसी, जैन, बौद्ध, ईसाई शरणार्थी आकर राजस्थान,पंजाब और दिल्ली में रह सकेंगे।

कांग्रेस का तर्क- बिल एनआरसी और 1985 के असम समझौते के विपरीत है:

मुख्या विपक्षी दल कांग्रेस ने बिल के विरोध का प्रमुख कारण 1985 के असम समझौते के उल्लंघन को माना। जिसके तहत साल 1985 में राजीव गांधी सरकार और असम स्टूडेंट यूनियन के मध्य अवैद्य प्रवासियों को निर्वासित करने के लिए तय किया गया था कि 1971 के पहले से रह रहे लोगों को ही असम का रहवासी माना जाएगा।

इसके अलावा एनआरसी पर सर्वोच्च न्यायलय का आदेश भी कहता है कि 24 मार्च 1971 के बाद दूसरे देश से असम में घुसपैठ करने वालों को भारत का नागरिक नहीं माना जाएगा।


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