पांच साल में एक बार दिया जाता है यह अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार, पाकिस्तान के जहां 4 लोगों को, तो केवल एक भारतीय को ही मिला है यह सम्मान

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दुनियाभर में मानव अधिकारों के संरक्षण व प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में असाधारण एवं उल्लेखनीय काम करने वाले व्यक्तियों तथा संस्थाओं के सम्मान के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा की तरफ से वर्ष 1966 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार पुरस्कार की स्थापना की गई। वर्ष 1968 से हर पांच साल में यह पुरस्कार दिया जाता है। इन 50 वर्षों में अब तक 10 बार यह पुरस्कार दिए जा चुके हैं। औसतन हर बार यह सम्मान 6 – 7 लोगों अथवा संस्थाओं को दिया जाता है। यह सम्मान जहां अब तक बेगम राणा लियाक़त अली खान, बेनज़ीर भुट्टो, मलाला युसुफ़ज़ई, आसमा जहांगीर सहित 4 पाकिस्तानियों को दिया जा चुका है तो वहीं बाबा आम्टे एकमात्र भारतीय हैं जिन्हें यह सम्मान मिला है।

कौन है बाबा आम्टे:

Baba amte

यूएन मानवाधिकार पुरस्कार से सम्मानित होने वाले इकलौते भारतीय बाबा आम्टे का पूरा नाम मुरलीधर देवीदास आम्टे था। महाराष्ट्र के वर्धा में जन्मे बाबा आम्टे ने अपनी पत्नी साधना आम्टे के साथ मिलकर आजीवन कुष्ठ पीड़ितों की सेवा और सशक्तिकरण करने का कार्य किया। प्रखर गांधीवादी बाबा आम्टे 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी सक्रिय रहे। कुष्ठ पीड़ितों के लिए अनेकों सेवा आश्रम की स्थापना की। बाद में नर्मदा बचाओ आंदोलन से भी जुड़े रहे। बाबा आम्टे को 1971 में पद्मश्री, 1975 में रैमन मैग्सेसे, 1988 में यूएन मानवाधिकार पुरस्कार, 1999 में गांधी शान्ति पुरस्कार सहित अनेकों राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए। वर्ष 2008 में बाबा आम्टे का देहावसान हो गया।

2018 का यूएन मानवाधिकार पुरस्कार पाकिस्तान की आसमा जहांगीर को मरणोपरांत दिया गया है:

Asma jahangir

2018 का यूएन मानवाधिकार पुरस्कार पाकिस्तान की आसमा जहांगीर सहित चार व्यक्तियों/संस्थाओं को दिया गया है। इनमें तंजानिया की रेबेका ग्युमि, ब्राज़ील की जोनिया वेपिक्साना, आयरलैंड की संस्था फ्रंट लाइन डिफेंडर्स भी शामिल है। इसी वर्ष फरवरी में दुनिया को अलविदा कहने वाली मानवाधिकार कार्यकर्ता आसमा को यह सम्मान मरणोपरांत दिया गया है।

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