कांग्रेस के स्थापना दिवस पर जानिए, कैसे एक राष्ट्रीय विरासत एक ही परिवार की जागीर बनकर रह गई

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साल 1885 में एक अंग्रेज़ प्रशासनिक अधिकारी एलन ऑक्टेवियन ह्यूम ने उस दौरान औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारतीय जागरुक वर्ग में पल रहे असंतोष को दूसरी दिशा में मोड़ने के लिए एक दल/संगठन की स्थापना की थी।

28 दिसंबर 1885 को तत्कालीन बम्बई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में दादा भाई नौरोजी, व्योमेश चंद्र बनर्जी, दिनेश ई वाचा, फिरोजशाह मेहता, गोपाल कृष्ण गोखले जैसे देश के माने हुए 72 समाज सुधारकों, पत्रकारों और वकीलों द्वारा इस संगठन का सम्मेलन आयोजित किया गया। उसी दिन उदय हुआ हिन्दुस्तान के स्वाधीनता संग्राम की धुरी बनकर देशभर में अंग्रेज़ राजशाही की खिलाफत में रोष पैदा करने वाले संगठन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का।

शुरूआती वर्षों में उदार और सुधारवादी रही कांग्रेस ने बाद के वर्षों में तिलक, बिपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय की सक्रियता से जनाक्रोश और क्रांति की राह पकड़ी। साल 1917 में जब महात्मा गांधी कांग्रेस में सक्रिय हुए, तब मोतीलाल नेहरू पार्टी के अगुआ नेताओं में शामिल थे। मोतीलाल नेहरू के पुत्र, जवाहर लाल नेहरू ने 1920 – 21 में असहयोग आंदोलन के दौरान संयुक्त प्रान्त में आंदोलन को नेतृत्व दिया था। यहीं से जवाहर लाल राष्ट्रीय पटल के नेता के तौर पर उभरे। अब तक स्वदेशी, संघर्ष, सत्याग्रह, जनांदोलन की राह थामे बैठी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का राजनीतिक सक्रियण 1923 के दौरान हुआ, जब मोतीलाल नेहरू और चित्तरंजन दास ने कांग्रेस के अंदर ही स्वराज पार्टी की स्थापना की। इसी वर्ष स्वराज पार्टी ने विधायी चुनाव में भागीदारी करते हुए अनपेक्षित सफलता प्राप्त की। स्वराजियों ने जमकर सदन में अंग्रेज़ सरकार की नीतियों का विरोध किया। राष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक सुधारवाद की तरफ ध्यान दे रही कांग्रेस का यह राजनीतिक प्रयोग भी सफल हो चुका था। इस समय यह तय हो चुका था कि ब्रिटिश राजशाही से आज़ादी मिलने के बाद नवस्वतंत्र भारत को दशा एवं दिशा देने का काम कांग्रेस द्वारा किया जाएगा। कांग्रेस ने व्यापक स्तर पर जन सहभागिता के सहारे आंदोलन, धरना, विरोध प्रदर्शन, किया। साल 1947 में ब्रिटेन ने भारत पर से अपना औपनिवेशिक अधिकार खो दिया था। इसी के साथ संविधान सभा द्वारा एक संप्रभु राष्ट्र का अपना संविधान बनने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी।

37 साल तक देश का प्रधान रहा है नेहरू-गांधी परिवार:

courtesy: INC website

स्वतन्त्रता के बाद तकरीबन 17 वर्षों तक देश पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व में आगे बढ़ा। नेहरू-गांधी परिवार की बात की जाए तो, 15 साल तक पंडित नेहरू की पुत्री इंदिरा गांधी प्रधानमन्त्री रही। देश के अगले पंतप्रधान इंदिरा के बेटे राजीव बने। इस तरह प्रत्यक्ष तौर पर 37 वर्ष तक राष्ट्र का मुखिया नेहरू-गांधी परिवार ही रहा। नेहरू-गांधी परिवार के राजनीतिक आलोचकों का तो यहां तक मानना है कि नरसिम्हा राव और डॉ.मनमोहन सिंह के प्रधानमन्त्री काल में भी परदे के पीछे से इसी एक परिवार का अधिपत्य रहा है।

कांग्रेस का अगुआ बनने के लिए ज़रूरी है नेहरू परिवार का वारिस होना:

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भले ही अपनी पार्टी के लिए एक संविधान बना रखा हो, लेकिन गौर किया जाए तो देश के सबसे पुराने राजनैतिक दल में आंतरिक लोकतंत्र बड़ी ही जर्जरता से जूझ रहा है। अपने-अपने समय में मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर रहे हैं। राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी 1998 से 2017 तक कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्षा बनी रही। उसके बाद राजीव-सोनिया के बेटे राहुल गांधी स्वाभाविक ही अध्यक्ष के तौर पर चुन लिए गए।

ताज़्ज़ुब ही है कि एक समय पर सर्वसमावेशी राजनीतिक धारणा का केंद्र रहने वाली कांग्रेस को आज एकाधिकार और मनमानेपन की प्रवृत्ति से जूझना पड़ रहा है। आखिर किसने अनुमान लगाया होगा कि नौरोजी, गोखले, बनर्जी, तिलक, मौलाना कलाम, अम्बेडकर, गांधी, नेहरु, बोस, पटेल, शास्त्री, सीतारमैया सरीखे राष्ट्र रत्नों समेत प्रत्येक भारतीय की अनमोल विरासत महज़ एक परिवार की जागीर बनकर रह जाएगी!

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