भारतीय स्वाधीनता संग्राम में सर्वप्रमुख एवं केंद्रीय भूमिका निभाने वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ज़िम्मेदारी महज़ 15 अगस्त 1947 को ही ख़त्म नहीं हुई थी। विभाजन के साथ संप्रभु हुए राष्ट्र में लोकतान्त्रिक जीवटता बनाए रखने का काम कांग्रेस के आला नेताओं ने तब किया। अस्थिरता के शुरूआती दौर में करीब 17 वर्षों तक प्रधानमन्त्री रहते हुए पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भारत को बिखरने से बचाए रखा। सार्वजनिक क्षेत्र में उत्तरोत्तर वृद्धि करते हुए देश में लोकतांत्रिक, स्वायत्त संस्थाएं बनाई, सुचारु संचालन किया। इस तरह बेजोड़ हुए भारतीय लोकतंत्र की मिसालें दुनियाभर में दी जाने लगी। नेहरू के बाद इस परिवार में से देश की प्रधानमन्त्री बनी उनकी बेटी इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी। पूरे 16 साल तक इंदिरा ने प्रधानमन्त्री का पदभार सम्भाला। इंदिरा के दौर में देश में आपातकाल लागू हुआ, पाकिस्तान से युद्ध लड़ा गया और खालिस्तानी आतंकियों से भिड़ंत भी हुई। ऐसे हर दौर और परिस्थिति का देश ने मज़बूती से सामना किया। कांग्रेस पार्टी और भारत में अब तक लोकतंत्र चरमोत्कर्ष पर था। लेकिन साल 1984 में इंदिरा गांधी की ह्त्या हो जाने के बाद जब देश का नेतृत्व अनुभवहीन राजीव गांधी के हाथों में दिया गया तो यह बहुत हद तक राष्ट्रीय लोकतंत्र के साथ बेईमानी थी। राजीव गांधी की ह्त्या के बाद भी देश का सबसे सशक्त राजनैतिक दल इसी परिवार के इर्द-गिर्द घूमता रहा।
सोनिया गांधी को बनाया कांग्रेस अध्यक्ष:
1991 में राजीव गांधी की ह्त्या हो जाने के बाद भारतीय राजनीति गठबन्धनी राजनीति के उतार-चढ़ाव भरे दौर से गुजरी। कांग्रेस अभी भी मज़बूत थी, लेकिन अन्य वैकल्पिक दल उभर रहे थे। मार्च 1998 में स्व. राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्षा बनी। दिसंबर 2017, तकरीबन 20 वर्ष तक वे इस पद पर बनी रही। इसके बाद पार्टी का अगुआ राहुल गांधी को बनाया गया। राहुल गांधी जिसका राजनीति में आना पारिवारिक वंशावली को आगे बढ़ाने से अधिक कठिन कभी नहीं रहा। जिसे सांसदी बड़ी ही सहजता से मिल गई। न कभी मंत्रिपद सम्भाला, न मुख्यमंत्री बने और राजनीति के सधे हुए सभी कांग्रेसी इस शख्स के मुरीद हो गए और फिर पूरी कांग्रेस ने मिलकर उसे प्रधानमन्त्री पद के लिए अपना दावेदार मान लिया।
फिर राहुल और अब प्रियंका:
2019 लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर नेहरू परिवार ने कांग्रेस पार्टी के लिए राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में प्रियंका गांधी को आगे कर दिया है। सोनिया-राजीव की पुत्री व राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी को उत्तरप्रदेश की राजनीति में महासचिव का ज़िम्मा देकर सक्रिय कर दिया गया है। अब यहां सवाल है कि क्या प्रियंका गांधी की जगह देश की कोई और अनुभवहीन महिला इतनी जल्दी और आसानी से कांग्रेस पार्टी अथवा राष्ट्रीय राजनीति में जगह बना सकती है? क्या कांग्रेस पार्टी में राहुल गांधी से अधिक काबिल उम्मीदवार कोई नहीं रह गया है? ये सवाल भले ही कांग्रेस आलाकमान के लिए महत्वहीन हो, लेकिन पार्टी के सिद्धांतों और ध्येय को तो अवश्य ही मलिन करते होंगे। लोकतांत्रिक भागीदारी की जर्जरता से जूझती कांग्रेस पार्टी की स्थिति आज बड़ी ही दयनीय प्रतीत होती है।
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