देश में आम चुनाव नज़दीक है, तो ऐसे में सियासी संवेदनशीलता के साथ राजनीतिक गहमा-गहमी होना लाज़िमी है। राजनैतिक दलबंदिया ज़ोरों-शोरों पर हैं, बयानबाजी और बहसे अपने उच्च स्तर पर है, तो आरोप-प्रत्यारोप निकृष्टता से भी अधिक नीचे आ चुके हैं। करीब सालभर से राफेल विमान सौदे में धांधलेबाजी का दावा करते हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चोर कहने से भी नहीं हिचकिचा रहे। समूचा विपक्ष केंद्र में सत्ताधारी भाजपा और प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ मोर्चेबंदी करने में लगा है। लोकतांत्रिक लहज़े पर गौर करें, तो यह रीत इतनी गलत भी नहीं है। विपक्ष का काम ही होता है, सरकार की आलोचना करते हुए जनतंत्र को सचेत करना, उसकी नाकामियों को जनता के सामने उजागर करना। होता भी यहीं आया है। नेहरू, इंदिरा, राजीव, नरसिम्हा राव, अटल, मनमोहन आदि सभी की सरकारों में यह परिपाटी चलती रही है। सत्तापक्ष का विरोध अक्सर ही प्रतिपक्ष ने किया है। इसका जवाब सरकार ने अपनी नीतियों, अपने काम के सहारे संयम और शालीनता से दिया है। पर इस बार परिदृश्य कुछ अलग है, या यूं कहे कि विपरीत है। सीधे-सीधे जवाब और हिसाब देना तो दूर, खुद सत्ता ही प्रतिपक्ष से सवाल पूंछ रही है। अतीत की सरकारों पर प्रश्नचिन्ह लगाकर विपक्ष के वज़ूद का ही विरोध कर रही है। संयम और शालीनता की तो बात ही मत कीजिए। राजशाही के तेवर आक्रामक है, हर सवाल को निशाने पर लिया जा रहा है, देशद्रोह बताया जा रहा है।
इस पूरी भागदौड़ में खुद प्रधानमंत्री मोदी अपनी अतिसक्रियता के चलते अपने आप को उस पाले में ले आए है, जिसमें राजनीति के नाम पर केवल और केवल भौंडा प्रदर्शन दिखाया जाता है।
अपने भाषण में झूठ बोलने से भी गुरेज नहीं करते प्रधानमंत्री मोदी:
पिछले पांच साल में देखें तो लोकसभा चुनाव के साथ-साथ हर राज्य के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा का प्रचार किया है। लगातार रैलियां की है, 3डी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की है, जनसभाएं सम्बोधित की हैं। अपने भाषणों की लाइव स्ट्रीमिंग चलाते हुए ट्वीट पर ट्वीट किए हैं, और सरकार के मंत्रीगणों ने जी भरकर उन ट्वीट्स को रीट्वीट किया है। विपक्षी नेताओं के बयानों और सोशल मीडिया पर पैनी नज़र रखते हुए प्रधानमंत्री उनके मायने बता रहे है। करीब 60 वर्ष देश की सत्ता संभालने वाले दल का पाकिस्तान के साथ कनेक्शन जोड़ रहे है। दलीय गठबंधन को मिलावट बता रहे है। हकीकत से दूर जनता के सामने मनगढंत और झूठे तथ्य पेश कर रहे है। आप प्रधानमंत्री मोदी का कोई भी चुनावी भाषण उठाकर सुन लीजिए। सत्यता से परे, मोदी संभावना और अंदेशों पर बात करते नज़र आते है। अनुमानों के आसरे झूठ पर झूठ बोला जा रहा है। वरना आप ज़रा सा विचार करके तो देखिए, हमारे देश का कोई राजनैतिक दल भला पाकिस्तान का साथ क्यों देगा! प्रधानमंत्री के सम्बोधनों से अब वह विश्वसनीयता ख़त्म होती जा रही है, जिसकी अपेक्षा देश को रहती है। पंतप्रधान के पद की गरिमा राजनीति की मैली चौखट पर नीलामी को बेकरार नज़र आती है। एक दंभी किरदार, इस पद को बेआबरू करने पर आमादा लगता है। देश के कार्यकारी प्रमुख का राजनैतिक दल के अगुआ की भूमिका में कमल छाप छाती के साथ नज़र आना सुहाता नहीं है। यकीन मानिए इस देश में प्रधानमंत्री का पद किसी भी राजनेता से कही बढ़कर होता है। राष्ट्र का प्रधानसेवक और चौकीदार होने के मनलोभी दावों के बीच आपकी लच्छेदार बतौलेबाजी, विपक्षी मुंहजोरी को जन्म देती है। आपको भाजपा का स्टार प्रचारक नहीं होना चाहिए, यह अमर्यादित प्रतीत होता है। इसी संसद भवन में आप ही के पद पर कभी आसीन रहे, देश के निवर्तमान प्रधानमंत्री स्व.अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था- ”चुनाव तो आते-जाते रहेंगे, सरकारें-बनती-बिगड़ती रहेगी, मगर यह देश रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र रहना चाहिए।”
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