संसद के शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन से पहले मोदी कैबिनेट ने बड़ा निर्णय लेते हुए आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को सरकारी नौकरियों व शिक्षा में 10 प्रतिशत आरक्षण देने के प्रस्ताव को अनुमति दे दी है। मंगलवार को शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन सरकार लोकसभा में संविधान के अनुच्छेद 15 एवं 16 में संशोधन के लिए बिल पेश करेगी, ऐसा माना जा रहा है।
संवैधानिक उपबंधों में करना होगा संशोधन:
गौरतलब है कि भारत के संविधान में आरक्षण की सीमा 50 फ़ीसदी निर्धारित की गई है। इसी 50 फ़ीसदी में ओबीसी, एससी व एसटी के लिए निश्चित आरक्षण का प्रावधान है। चूँकि सरकार सवर्णों को आरक्षण, अन्य वर्गों के आरक्षण कोटे में कटौती करते हुए नहीं देने वाली। अतः इस 50 प्रतिशत को 60 फ़ीसदी तक ले जाना सरकार के लिए चुनौती होगी। इसके लिए संविधान में संशोधन एक प्रक्रिया है। माना जा रहा है कि इस विषय पर अपनी दृढ़ मंशा जाहिर करने के लिए केंद्र सरकार मंगलवार को संसद सत्र के अंतिम दिन अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन करते हुए आरक्षण सीमा को 60 प्रतिशत तक ले जाने का बिल सदन में ला सकती है। दो तिहाई बहुमत से विधेयक को पारित करवाना आवश्यक है।
दूसरा तरीका अध्यादेश का है, लेकिन संवैधानिक जानकारों का कहना है कि इस दशा में सर्वोच्च न्यायलय अध्यादेश को अवैध अथवा असंवैधानिक करार दे सकती है।
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने भी दिया समर्थन:
आर्थिक तौर पर पिछड़े सवर्णों के हित के लिए मोदी कैबिनेट द्वारा किए गए इस निर्णय का समर्थन कांग्रेस पार्टी ने किया है। कांग्रेस की तरफ से प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए पार्टी प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने स्पष्ट किया कि ”कांग्रेस पार्टी गरीब एवं पिछड़े सवर्णों के आरक्षण का समर्थन करती है।” साथ ही सरकार पर रोजगार को लेकर सवाल दागा कि बगैर रोजगार के रोजगार में आरक्षण के कोई मायने नहीं है। इसी के साथ सुरजेवाला ने बताया कि 2010-11 में कांग्रेस सरकार ने आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के लिए एक समिति गठित की थी। उस समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में कमज़ोर आर्थिक वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की अनुशंसा की थी।
इसी के साथ आम आदमी पार्टी के संजय सिंह और अरविन्द केजरीवाल ने भी सरकार के इस फैसले को समर्थन दिया है। आप के संयोजक अरविन्द केजरीवाल ने ट्वीट किया-
”चुनाव के पहले भाजपा सरकार संसद में संविधान संशोधन करे। हम सरकार का साथ देंगे। नहीं तो साफ़ हो जाएगा कि ये मात्र भाजपा का चुनाव के पहले का स्टंट है”
गौरतलब है कि दलित नेता और बसपा सुप्रीमो मायावती भी आर्थिक रूप से कमज़ोर सवर्णों के लिए आरक्षण की पैरवी करने वालों में रही है।
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