निश्चित ही आप कहेंगे कि यह मनोहर पर्रिकर की हिम्मत और ज़िंदादिली की मिसाल है कि, कैंसर की विकट स्थिति में होने के बावजूद वे गोवा मुख्यमंत्री पद पर अपनी ज़िम्मेदारी निर्वहन कर रहे है। इस बात से हम भी असहमत नहीं है, लेकिन थोड़ी देर के लिए गंभीरता से देखा जाए तो जो दूसरा पहलू नज़र आता है, वह अत्यंत ही संवेदनशील है। मानवीय नज़रिए से विचार करना होगा, राजनैतिक नहीं। आखिर क्या ज़रूरत आन पड़ी कि इस गंभीर बीमारी के दुर्दम चरण में होते हुए भी पर्रिकर मुख्यमंत्री पद पर बने हुए है। नाक में ड्रिप लगाकर निरीक्षण करने जाते, सभा में बैठे पर्रिकर की तस्वीर बहुत वायरल हो रही है। बहादुरी से कैंसर से लड़ रहे पर्रिकर ‘हाव इज़ द जोश’ पुकारते है, तो अनेकों लोगों को वह गर्जना लगती है, लेकिन यकीन मानिए वह कराहना है। पर्रिकर का शरीर दुबला हो चुका है, आप देखेंगे तो सालभर में बहुत फर्क नज़र आता है। आजीवन ईमानदारी और सादगी का पर्याय रहे पर्रिकर आज बीमारी के कारण बेहद दर्दनाक स्थिति में है। ऐसे समय, जब उन्हें आराम करते हुए जल्द से जल्द उबरना चाहिए, वे मुख्यमंत्री पद पर बने हुए है। अफ़सोस कि देश की मानसिकता मानवता और सहृदयता से अधिक राजनीति को महत्व देने लगी है।
क्या गोवा में सरकार बचाने के लिए पर्रिकर का इस्तेमाल कर रही है राजनीति:
यह सर्वविदित है कि गोवा में भाजपा की सरकार बिल्कुल किनारे पर खड़ी है। 2017 विधानसभा चुनाव के नतीजे भी भाजपा के पक्ष में नहीं थे। 40 विधानसभा सीटों वाली गोवा विधानसभा में कांग्रेस की 17 सीटों के सामने भाजपा 13 पर ही ठहर गई थी। तब गोवा फॉरवर्ड पार्टी (जीएफपी) और महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी (एमजीपी) ने 3 – 3 सीटें हासिल की थी। निर्दलीय भी 3 सीटें जीतने में सफ़ल रहे थे वहीं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने 1 सीट निकाली थी। उस समय भाजपा ने एमजीपी, जीएफपी और निर्दलीयों का सहयोग लेकर बहुमत के आंकड़े (21 सीट) को छूकर सरकार बना ली थी। एक भी सीट उधर होती तो सरकार गिर सकती थी।
एमजीपी नेता सुदिन धवलीकर ने तब शर्त रखी थी, कि उनकी पार्टी भाजपा को तभी समर्थन देगी, जब मनोहर पर्रिकर को गोवा का मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। बिना पर्रिकर के भाजपा को समर्थन देने से 3 विधायकों वाली एमजीपी ने इंकार कर दिया था।
पर्रिकर पर तब भारत सरकार में रक्षा मंत्रालय का प्रभार था। भाजपा एमजीपी की शर्त मान बैठी और किसी भी परिस्थिति में गोवा में सरकार बनाने के लिए पार्टी आलाकमान ने पर्रिकर को राज्य में भेज दिया।
आज भी स्थिति ठीक वही है। भाजपा बहुमत के किनारे पर है, लेकिन पर्रिकर स्वस्थ नहीं है, बावजूद मुख्यमंत्री बने हुए है, क्योंकि सरकार बचाए रखनी है। कमज़ोर स्वास्थ्य के इस दौर में पर्रिकर के लिए सेहत प्राथमिकता होनी चाहिए। क्योंकि देश के सबसे छोटे राज्य में मुख्यमंत्री की कमान तो किसी को भी दी जा सकती है। लोकतंत्र भी यहीं कहता है, और संविधान भी इज़ाज़त देता है। इससे राष्ट्र को कोई ख़तरा नहीं होगा, गोवा को भी नुकसान नहीं होगा, विकास कार्य भी नहीं रुकेंगे। अधिक से अधिक भाजपा के लिए प्रतिकूल स्थिति में उसकी सरकार गिर सकती है, कांग्रेस मुक्त भारत के उसके सपने में रुकावट आ सकती है। शायद इसीलिए जुझारूपन के नाम पर एक आदर्श राजनेता पर्रिकर को भाजपा व्यथित कर रही है!
अंत में: मनोहर पर्रिकर जल्द स्वस्थ हो, सक्रिय हो, हमारी यही अभिलाषा है।