राजस्थान विधानसभा – 2018 के चुनाव होने वाले हैं। इसी के साथ सत्ता की छीना-छपटी को लेकर लगाए जाने वाले विभिन्न राजनीतिक कयास थम जाएंगे। अब तक के लगभग सभी सर्वें बताते हैं कि सूबे में इस बार भाजपा की वापसी मुश्किल हो सकती है। शासन व्यवस्था का सुस्त रवैया, जनता की नाराज़गी और आक्रामक विपक्ष इसका बड़ा कारण है। इन सभी चुनावी अनुमानों और मसलों के इतर भी अभी ऐसे कई मुद्दें हैं जिनके सहारे भाजपा फ्रंटफुट पर खेलती नज़र आ सकती है।
कांग्रेस नेतृत्व का असंतुलन:
2013 के पिछले विधानसभा चुनाव में करारी मात खाने वाली कांग्रेस में इस वक़्त जो उत्साह देखने को मिल रहा है वह निश्चित ही काबिल-ए-तारीफ़ है। लेकिन यह उत्साह जिस तरह से पार्टी के बड़े नेताओं की महत्वाकांक्षाओं में परिवर्तित हुआ है वह कांग्रेस के लिए चिंता का विषय हो सकता है। ऐसा प्रतीत होती है कि पार्टी किसी एक चेहरे को मुखिया बनाकर चुनाव लड़ने पर एकमत नहीं है। सभी बड़े नेताओं के अपने-अपने छत्रप बन चुके हैं। अशोक गहलोत, सचिन पायलट, रामेश्वर डूडी, सीपी जोशी, लालचंद कटारिया जैसे दिग्गजों में से शायद ही कोई ऐसा नेता हो जो प्रादेशिक राजनीति में अपना कद बढ़ाना न चाहता हो। यहां नेतृत्व को लेकर कांग्रेस में विद्यमान इस अंतर्कलह का लाभ मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही भाजपा उठा सकती है, ऐसी संभावना प्रबल नज़र आती है।
पिछली कांग्रेस सरकार का प्रदर्शन:
2013 विधानसभा चुनाव में राजस्थान में रिकॉर्ड विजय हासिल करने वाली भाजपा ने पिछली कांग्रेस सरकार के प्रदर्शन को लचर साबित करते हुए जनमत को अपनी ओर किया था। प्रदेश में आर्थिक संकट, रिफाइनरी के एमओयू में लापरवाही, खान घोटाला, एम्बुलेंस घोटाला, महिला सुरक्षा आदि ऐसे अनेक तथाकथित आरोप थे जिनको भुनाकर भाजपा पिछली बार सत्ता हासिल करने में कामयाब रही थी। इस बार भी भाजपा कांग्रेस के पिछले कार्यकाल को लेकर सवाल उठाती रही है, लेकिन देखना यह मज़ेदार होगा कि क्या भाजपा जनता के बीच जाकर अपने काम भी गिनवा पाती है!!
प्रधानमंत्री मोदी की छवि:
यकीनन वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शख्सियत 2013 -14 के आक्रामक, परिवर्तनकारी शख्सियत की तुलना में कमज़ोर हुई है। बावजूद इसके मोदी आज भी पूरी तरह से जनमत को अपनी ओर करने में माहिर है। उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में अंतिम सप्ताह के दौरान लगातार ताबड़तोड़ रैलियां और सभाएं कर मोदी ने जिस तरह जनसामान्य की भावनाओं को भाजपा से जोड़ा वह अद्भुत ही था। इसलिए यदि इस छवि को भुनाने में भाजपा कामयाब हो जाती है तो निश्चित ही कांग्रेस के पसीने छूट सकते हैं।
केवल एक मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट:
2013 में 4 मुस्लिम प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारने वाली भाजपा ने इस चुनाव में प्रदेश की कुल 200 विधानसभा सीटों में से केवल एक टोंक की सीट से मुस्लिम प्रत्याशी यूनुस खान को टिकट दिया है। वहीं कांग्रेस ने प्रदेश की 15 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को मौक़ा दिया है। इसी के साथ योगी आदित्यनाथ को स्टार प्रचारक बनाकर जनता के बीच उनकी रैली-सभाएं करवाना भी भाजपा की रणनीति में सम्मिलित है। ऐसे में हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण में माहिर भाजपा यदि जनमत को साम्प्रदायिकता से रंग देती है तो लोकतंत्र की यह हार कांग्रेस के लिए भारी पड़ सकती है।