महात्मा गांधी का दांडी मार्च, अन्याय व अत्याचार की खिलाफत में अहिंसा और सत्य की दृढ़ता का अनूठा प्रयोग

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12 मार्च 1930 के दिन महात्मा गांधी ने गुजरात के साबरमती आश्रम से जो पैदल मार्च शुरू किया, उसका समापन भले ही उसी वर्ष की 6 अप्रैल को गुजरात के दांडी समुद्री तट पर हो गया हो, लेकिन भारत के जनसामान्य में पैदा हुई वह चेतना देश को आज़ादी मिलने तक नहीं थमी। करीब 200 वर्षों तक अंग्रेजी औपनिवेशिक सत्ता ने भारत पर शासन किया। इस दौरान जितना हो सकता था देश का आर्थिक शोषण अंग्रेज़ों ने किया। यहां के कुटीर उद्योग समाप्त कर दिए गए, जनता पर तरह-तरह के टैक्स लादे गए, अंग्रेज़ों ने यहां के रेशम और कच्चे माल का उपयोग कर ब्रिटैन में मशीनों की सहायता से कपडे और उत्पाद तैयार किए। हिन्दुस्तान के तैयार सामान पर भारी कररोपण कर दिया गया। यंत्रीकरण और मशीनीकरण के द्वारा भारतीय अर्थतंत्र की रीढ़ रही हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया गया। हर चीज़ अंग्रेज़ राजशाही के टैक्स के तले दब चुकी थी, 1930 के दशक में नमक बनाने पर भी कर थोप दिया था। हालांकि नमक पर कर कम था, लेकिन अधिक उपयोग की वस्तु होने और सभी व्यक्तियों के काम आने की वजह से अंग्रेज़ों द्वारा उगाए जाने वाले कुल कर में इसका हिस्सा करीब 8 फ़ीसदी था। प्राकृतिक नमक गुजरात के समुद्र तटों पर भारी मात्रा में स्वयं ही उत्पादित होता था। ऐसे में गांधीजी ने हर आम और गरीब जन को विदेशी शासकों के इस तानाशाही फरमान के खिलाफ खड़ा किया।

24 दिन में पूरी हुई, 240 मील की दांडी यात्रा:

गुजरात के साबरमती आश्रम से अरब सागर के किनारे बसे नवसारी के दांडी तट पर 6 अप्रैल की सुबह महात्मा गांधी ने किनारे की नमक मिली हुई रेत हाथ में उठाकर भारत में जड़े जमाए बैठी विदेशी सत्ता का प्रतिकार किया। गांधीजी की यह यात्रा उनके 78 अनुयाइयों के साथ कुल 24 दिनों में 240 मील (384 किलोमीटर) के मार्च के साथ समाप्त हुई। इस यात्रा में गांधीजी ने मूल कांग्रेसियों के बजाय साबरमती आश्रम के अपने अनुयायियों को चुना। गांधीजी इस दौरान करीब 48 गांवों और 4 ज़िलों से होकर गुजरे। हर गांव में पहुंचने पर गांधी जी स्थानीय लोगों को सम्बोधन देते, अपने हक़/अधिकारों की लड़ाई लड़ने की प्रेरणा देते और स्वदेशी का प्रयोग करते हुए आत्मनिर्भर व कार्यशील बनने की सीख देते। गांधीजी के साथ इस मार्च में शामिल सभी लोगों ने सफेद खादी पहन रखी थी, ऐसे में जहां कही से यह मार्च आगे बढ़ता तो लगता जैसे सफ़ेद नदी बह रही हो। 62 वर्षीय महात्मा गांधी ‘रघुपति राघव राजा राम’ और वैष्णव जन ते तेने कहिए’ भजन गाते हुए तेज और अनुशासित कदमताल के साथ आगे बढ़ते जाते थे। दांडी तट पर मुट्ठी में नमक उठाकर विदेशी शासन के प्रति विरोध दर्शाना सांकेतिक भले ही था, लेकिन गांधी जी के इस मार्च से अंग्रेज़ शासन की चूलें  हिल गई थी। गांधी बगैर किसी यंत्र-तंत्र के आगे बढ़ते गए और देशवासियों को औपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ एकजुट कर दिया। आगे चलकर इसी संगठित भावना और सत्य, अहिंसा के सामूहिक दृढ़ प्रयोग ने जुल्म और दमन के पर्याय माने जाने वाले ब्रिटिश राज को भारत से उखाड़ फेंका।

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