शंकर सिंह वाघेला, राजनीतिक निर्णयों की असक्षमता और अनिश्चितता का शिकार ऐसा व्यक्तित्व, जिसे सियासत में वह कभी नहीं मिला, जिसकी वह उम्मीद लगाए बैठा रहा। एक समय पर गुजरात की राजनीति में वर्चस्वशाली रहे इस शख्स ने अक्सर अपने आप को उपेक्षा का शिकार मानते हुए पाले बदले। बावजूद इसके कभी संतुष्टि नहीं मिली।
जयपुर टुडे में आज हम बात कर रहे हैं गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री व नेता प्रतिपक्ष शंकर सिंह वाघेला की। राजनीतिक जीवन की शुरुआत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता रहे वाघेला लीक पर चलते हुए जनता पार्टी में सक्रिय हुए। इंदिरा सरकार के आपातकाल का विरोध किया, और जेल भी गए। 1977 में गुजरात के कपडवंज से निर्वाचित होकर देश की 6ठी लोकसभा में पहुंचे। फिर 1980 का चुनाव हार गए। जनसंघ के साथ जुड़े, जोकि भारतीय जनता पार्टी में परिवर्तित हुई। तब से लेकर 1991 तक करीब 10 वर्ष से अधिक गुजरात में भारतीय जनता पार्टी के महासचिव और अध्यक्ष रहे।
1996 में भाजपा छोड़ी:
1995 में गुजरात विधानसभा चुनाव में 121 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार शंकर सिंह वाघेला थे, लेकिन उन्हें किनारे कर केशूभाई पटेल को सूबे की कमान सौंपी गई। उसी वर्ष सितम्बर महीने में वाघेला ने अपने सहयोगी 47 विधायकों के साथ बगावत कर दी। केशूभाई को बेदखल करते हुए अपने समर्थक सुरेश मेहता को मुख्यमंत्री बना दिया। इसके बाद 1996 के लोकसभा चुनाव में वाघेला अपनी गोधरा की सीट गवा बैठे। साथ ही सुरेश मेहता की सरकार भी गिर चुकी थी। अब वाघेला ने ‘राष्ट्रीय जनता पार्टी बनाई’ और कांग्रेस के समर्थन से राज्य के मुख्यमंत्री बन गए। समर्थन लेने और देने की ऐसी अव्यवस्था पसरी कि वाघेला बमुश्किल सालभर मुख्यमंत्री रह पाए। भाजपा से सभी प्रकार का नाता तोड़ बैठे वाघेला अब पूरी तरह से कांग्रेस के हो चुके थे। 1998 में फिर से राज्य में विधानसभा चुनाव हुए, केशूभाई पटेल के नेतृत्व में एक बार फिर भाजपा सरकार बनाने में सफल रही।
20 साल बाद कांग्रेस छोड़ी, एनसीपी में गए:
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देश की 6ठी, 9वीं, 10वीं, 13वीं, और 14वीं लोकसभा का चुनाव जीतकर, वाघेला पांच बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। इसी के साथ 1989 से 1995 के दौरान राज्यसभा सांसद भी रहे। मनमोहन सिंह की पहली सरकार में शंकर सिंह वाघेला को केंद्रीय कपडा मंत्री बनाया गया। इस तरह वाघेला का राजनैतिक जीवन पूरी तरह समृद्ध रहा। इतने सब के बाद भी वाघेला के राजनीतिक जीवन में अनिश्चितताएं यहीं थमने वाली नहीं थी। 2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले वाघेला ने कांग्रेस छोड़कर ‘जन विकल्प मोर्चा’ बनाकर राज्य के विधानसभा चुनाव में 95 सीटों पर दावेदारी की। महज़ 0.3 फ़ीसदी मतों के साथ यह मोर्चा एक भी सीट नहीं जीत सका। वर्तमान में शंकर सिंह वाघेला गुजरात की राजनीति में इतने प्रासंगिक नहीं है, लेकिन अपनी सियासत बरकरार रखने की बेकरारी अभी उनमें बाकी है। शायद यहीं कारण है कि भाजपा और कांग्रेस को ठुकराए बैठे वाघेला अब शरद पंवार की ‘राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी’ (एनसीपी) में सम्मिलित हो गए है।
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