प्रतीत होता है कि 2019 का लोकसभा चुनाव भारतीय राजनीति में एक बेहद रोमांचक मोड़ साबित होने वाला है। बात विशेषकर राजस्थान की करें तो लगता है कि राज्य के विधानसभा चुनाव में बहुमत के बूते सरकार बनाने वाली कांग्रेस पार्टी लोकसभा में मज़बूत दिखती भारतीय जनता पार्टी को इस दफ़ा कांटे की टक्कर दे पाएगी। 2014 में तो प्रदेश की 25 सीटों पर भाजपा के आगे कांग्रेस बेदम साबित हुई थी, और शून्य पर ही सिमट गई थी। ऐसे में इस बार भाजपा के लिए वही क्लीन स्वीप कर पाना जहां नामुमकिन लग रहा है तो कांग्रेस पहले से बेहतर कर पाएगी यह निश्चित ही है। इसी बीच अंदेशा लगाए दोनों पार्टियों के प्रत्याशी चयन पर तो भाजपा के लिए कम कठिन और कांग्रेस के लिए मुश्किलभरा निर्णय नज़र आ रहा रहा है। राजस्थान की सबसे महत्वपूर्ण लोकसभा सीट की चर्चा करें तो ग्रामीण और शहरी दो भिन्न परिवेश को समेटे हुए राजधानी जयपुर विशिष्ट है। शुरूआती वर्षों को छोड़ दिया जाए तो यह क्षेत्र हमेशा ही भाजपा का गढ़ रहा है। हालांकि 2009 में कांग्रेस प्रत्याशी महेश जोशी ने यहां की शहरी सीट से जीत हासिल की थी। इस दफ़ा इस सीट के समीकरण परखे जाए तो सबसे प्रबल दावेदार के तौर पर एक पूर्व आईएएस अधिकारी और लोकप्रिय राजपूत चेहरा डॉ.अजय सिंह चित्तौड़ा का नाम उभरकर सामने आता है। जी हां, 37 वर्ष तक जयपुर ज़िले में प्रशासनिक अधिकारी रहे अजय सिंह चित्तौड़ा निकट भविष्य में शहर की राजनीति में प्रतिष्ठित हो जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
फिलहाल कोई और मज़बूत नाम कांग्रेस के पास नहीं:
देखा जाए तो इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी अपने सभी दिग्गजों को आज़मा चुकी है। जयपुर शहर से सांसद रहे महेश जोशी व ग्रामीण के बड़े नेता लालचंद कटारिया विधानसभा चुनाव जीतकर मंत्रिपद प्राप्त कर चुके हैं। कांग्रेस बहुमत के ठीक किनारे पर ही है। पार्टी यह बखूबी जानती है कि 200 विधानसभा सीटों में 100 से अधिक सीट वह नहीं निकाल पाई है। ऐसे में किसी विधायक की सीट खाली करवाकर उसे लोकसभा के मैदान में उतारने का दाव कांग्रेस चले, इसके आसार नहीं है। अर्चना शर्मा, पुष्पेंद्र भारद्वाज जैसे कांग्रेसी राजनेता जहां विधानसभा में ही शिकस्त झेल चुके हैं, तो पूर्व मेयर ज्योति खंडेलवाल को पार्टी आलाकमान नकार चुका है। इसी बीच वर्तमान में पूरे दम-खम से प्रचार-प्रसार में लगा कोई उम्मीदवार जयपुर शहर सीट पर कांग्रेस की तरफ़ से दावेदार बनने की तैयारी में नज़र आता है तो वह अजय सिंह चित्तौड़ा के सिवाय दूसरा नहीं।
37 साल तक जयपुर में अधिकारी रहना और बेदाग़ छवि चित्तौड़ा के पक्ष में:
गौरतलब है कि 37 वर्ष तक जयपुर के अधिकांश विभागों में अधिकारी के रूप में कार्यरत रहे अजय सिंह चित्तौड़ा का बेदाग़ कार्यकाल और लोकप्रिय छवि जयपुर सांसद के लिए दावेदारी के उनके पक्ष को मज़बूत बनाती है। डॉ.अजय सिंह चित्तौड़ा का शिक्षित होना और प्रशासनिक अधिकारी के रूप में अच्छा-खासा अनुभव होना युवाओं को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त कारण है। इसी के साथ छात्रजीवन में राजस्थान विश्वविद्यालय की राजनीति में सक्रिय रहना भी चित्तौड़ा के लिए सकारात्मक बिंदु है।
जातिगत व सामजिक समर्थन भी पक्ष में:
सशक्त व्यक्तिगत छवि रखने वाले अजय सिंह चित्तौड़ा का जातिगत व सामाजिक आधार भी बेहद मज़बूत है। राजस्थान की राजपूत जाति से आने वाले चित्तौड़ा की पैतृक वंशावली ठिकाने और जागीर की उस परम्परा को समेटे हुए है, जो आज भी राजपूतों में गौरव का अहसास कराती है। भले ही जयपुर शहर लोकसभा पर जातीय तौर पर ब्राम्हण प्रभुत्व रहा हो, लेकिन सुशिक्षित प्रशासनिक अधिकारी की शख्सियत उस फैक्टर पर हावी रहेगी, ऐसा माना जा रहा है।
पार्टी आलाकमान से नज़दीकियों और कांग्रेसजनों में गहरी पैठ, चित्तौड़ा की दावेदारी के लिए काफ़ी:
जानकारी लेने पर मालूम चलता है कि जयपुर के किसी अन्य राजनेता की तुलना में अजय सिंह चित्तौड़ा का संपर्क कांग्रेस आलाकमान तक बेहद नज़दीकी से है। रायबरेली में ननिहाल होने के कारण चित्तौड़ा यूपीए चैयरपर्सन सोनिया गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के क़रीबी माने जाते हैं। इसके अलावा प्रदेश के अनेकों कांग्रेसी नेताओं व विधायकों के साथ अच्छा सम्पर्क व प्रशासन और शासन की सम्बद्धता का लाभ भी सीधे तौर पर चित्तौड़ा को कांग्रेस के सांसद दावेदार के रूप में प्रस्तुत करता नज़र आ रहा है।
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