राजस्थान विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद भाजपा प्रदेश की सत्ता से बेदखल हो चुकी है। पिछली बार 200 में से 162 विधानसभा सीटों पर जीतने वाली भाजपा के लिए इस बार 73 तक सिमट जाना निश्चित ही आत्ममंथन का विषय होगा। बताया जाता है कि चुनाव से पहले ही प्रदेश में उठ रही सत्ता विरोधी लहर को भाजपा भांप चुकी थी। यहीं कारण रहा कि प्रदेश के बड़े वोटबैंक मीणा समुदाय को अपनी ओर करने के लिए भाजपा ने इस समुदाय के दिग्गज नेता डॉ. किरोड़ी लाल मीणा को पार्टी में शामिल किया।
प्रभावशाली नहीं रह पाए किरोड़ी लाल मीणा:
राजस्थान की राजनीति की दशा एवं दिशा तय करने में मीणा समुदाय की अहम् भूमिका मानी जाती है। इसी के साथ इस समुदाय का सर्वमान्य नेता वर्षों से डॉ.किरोड़ी लाल मीणा को ही माना गया है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने किरोड़ी की घर वापसी करवाई थी। लेकिन इस बार के चुनावी नतीजे को देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि अबकी बार किरोड़ी अप्रभावी रहे। किरोड़ी दौसा ज़िले की पांच विधानसभा में से एक पर भी भाजपा को जीत नहीं दिला पाए। करौली और सवाई माधोपुर में भी भाजपा शून्य पर सिमटी तथा टोंक की महज़ एक सीट ही अपने नाम कर पाई। दो बार विधायक रह चुकी पत्नी गोलमा देवी को भी इस बार विधानसभा पहुंचाने में किरोड़ी नाकाम रहे।
अपनी ही शर्तों पर आए थे किरोड़ी:
2008 में भाजपा छोड़ने वाले किरोड़ी की 10 साल बाद हुई वापसी पर गौर करे तो यह सहज ही अनुमानित होता है कि किरोड़ी अपनी ही शर्तों पर भाजपा में शामिल हुए हैं। भाजपा में आने के बाद किरोड़ी को राज्यसभा के लिए निर्वाचित किया गया। चुनावी रणनीति से लेकर टिकट बंटवारे तक, पार्टी में हर जगह किरोड़ी की मौजूदगी प्रभावी रही। करौली के सपोटरा से जहां किरोड़ी ने अपनी पत्नी गोलमा देवी को टिकट दिलवाया तो वहीं भतीजे राजेंद्र मीणा को भाजपा प्रत्याशी के तौर पर दौसा के महुआ से मैदान में उतारा। किरोड़ी की साख बनकर उतरे इन दोनों ही प्रत्याशियों को करारी हार का सामना करना पड़ा। इस तरह किरोड़ी भाजपा के लिए राजस्थान में पूरी तरह बेअसर साबित हुए।