आरबीआई सरकार को पैसा दे या नहीं, इसके निर्धारण के लिए बनी जालान समिति

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courtesy: Livemint

भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) अपने रिज़र्व/अधिशेष में कितना धन रख सकता है, तथा सरकार को डिविडेंट के रूप में कितना पैसा दे सकता है, इस सम्बन्ध में अध्ययन के लिए भारत सरकार ने आरबीआई के पूर्व गवर्नर विमल जालान की अध्यक्षता में जालान समिति बनाई है। यह समिति दुनिया के अन्य देशों के केंद्रीय बैंकों की तुलना रिज़र्व बैंक से करते हुए सरकार को दिए जाने वाले डिविडेंट का निर्धारण करेगी। इसके सम्बन्ध में समिति अपनी रिपोर्ट पहली बैठक के 90 दिन के भीतर सरकार को देगी।

वित्त मंत्री कह चुके हैं सरकार को आरबीआई से नहीं मदद की दरकार:

गौरतलब है कि अभी कुछ दिनों पूर्व देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि सरकार के पास पर्याप्त धन है, तथा आरबीआई से कोई धन नहीं चाहिए। वित्त मंत्री का यह बयान हाल ही में पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल के इस्तीफा देने के बाद आया था। उल्लेखनीय है कि उर्जित पटेल के पदभार छोड़ने के पीछे कारण सरकार द्वारा आरबीआई से अधिक पैसा निकालने के सम्बन्ध में केंद्रीय बैंक की धारा 7 के अंदर हस्तक्षेप को बताया जाता है।

कुल छह सदस्य होंगे जालान समिति में:

Bimal jalan, tweeted by: @ndtv

केंद्रीय बैंक का रिज़र्व निर्धारण के लिए गठित समिति में अध्यक्ष पद पर विमल जालान तथा उपाध्यक्ष पद पर आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर राकेश मोहन होंगे। इनके साथ ही आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड के निदेशक भरत दोशी व सुधीर मानकड, सरकार के आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग एवं आरबीआई के वर्तमान डिप्टी गवर्नर एन.एस.विश्वनाथन सदस्य के तौर पर सम्मिलित होंगे।

इससे पहले भी बन चुकी है समितियां:

यहां आपको बता दें कि आरबीआई का रिजर्व फंड निर्धारित करने के लिए भारत सरकार द्वारा इससे पहले भी तीन समितियों का गठन किया जा चुका है। साल 1997 में सुब्रमण्यम समिति, 2004 में उषा थोराट समिति और साल 2013 में वाई.एस. मालेगाम समिति का गठन किया गया था। इनमे से सुब्रमण्यम समिति ने जहां 12% तो थोराट समिति ने केंद्रीय बैंक में 18% रिजर्व रखने की सिफारिश की थी। इसी के साथ मालेगाम समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि आरबीआई अपने लाभ से ज़्यादा पैसा, सरकार को नहीं दे सकता।

पूर्व गवर्नर राजन ने कहा, सरकार को ज़्यादा रकम देने से केंद्रीय बैंक की रेटिंग घटने के आसार

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