सत्ता परिवर्तन के साथ हृदय परिवर्तन, क्या किसान सिर्फ राजनीति का विषय बनकर रह गया है!!

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courtesy: Asia Times

कृषि प्रधान राष्ट्र भारत की अधिकांश जनसंख्या प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। जनसांख्यिक आंकड़े बताते हैं कि देश में करीब 12 करोड़ किसान है। इस तरह राजनैतिक दृष्टि से किसान एक बड़ा मतदाता वर्ग बनाता है। देश के विभिन्न राज्यों में रहने वाले किसानों के हित परस्पर सम्बद्ध रहते हैं। मांग भी एक ही रहती है। शायद यहीं कारण है कि चुनावों के समय देश के सभी राजनैतिक दल किसानों की मान-मुनव्वल में लग जाते हैं। चुनावी मौसम में किसानों के प्रति बड़े-बड़े वादे, घोषणाएं किए जाते हैं। सम्भावनाओं से परे और भारीपन से भरे ये वादे सत्ता में आने पर अक्सर पूरे नहीं हो पाते। खेती और किसानों की स्थिति-परिस्थिति जस की तस बनी रहती है। फिर इसी मुद्दे पर विपक्ष सरकार पर सवाल उठाने लगता है। साल-दर-साल गुज़रते जाते हैं। आखिर सत्ता पाकर किसान हितैषी दृष्टि खो बैठी राजव्यवस्था मूक और जड़ हो जाती है।

पहले कांग्रेस तो अब भाजपा को आता है किसानों का दर्द:

राजस्थान, मध्य प्रदेश या छत्तीसगढ़ की बात करे जहां हाल ही में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए है। तो स्पष्ट नज़र आता है कि इन राज्यों में सत्ता परिवर्तन के साथ ही राजनैतिक दलों का हृदय परिवर्तन भी हो चुका है। किसानों के अधिकार और अस्मिता की जो आवाज़ पहले विपक्ष में बैठी कांग्रेस उठाती थी, वह अब भाजपा उठाने लगी है। लगता है जैसे सत्ता संभालने वाली नई-नवेली सरकारें संवेदनाएं खो बैठी है, तथा बरसों से राजशाही का सुख भोगकर, अन्नदाता को निरीह बनाने वाले लोग विपक्ष में आकर किसान से हमदर्दी का ढोंग कर रहे हैं।

राजस्थान, मप्र में यूरिया की मांग बढ़ने पर किसानों की लम्बी कतारों, और उन पर चलती लाठियों का मसला अब सिर्फ भाजपा उठा रही है। रात को शीतलहर में ठण्ड लगने से अन्नदाता की मौत हो जाती है, सत्ता में बेफिक्र रही भाजपा अब विपक्ष में बैठी-बैठी उस पर सवाल उठा रही है, मगर अफ़सोस की इसी अन्नदाता के सहारे सत्ता की सीढ़ी चढ़ने वाली कांग्रेस अभी खामोश है।

भाजपा ने कर्जमाफी के वादे पर महाराष्ट्र, यूपी तो कांग्रेस ने कर्नाटक, छत्तीसगढ़, एमपी, राजस्थान जीता:

कर्जमाफी वो जुमला है, जो अब अक्सर चुनावों के आसपास उछाला जाता है। इस मनमोहक फेर में गच्चा खाकर किसान राजनीतिक दग़ाबाज़ी का शिकार होने की तरफ मतदान कर बैठता है। अधिकांशतः अधिक बोली लगाने वाला राजनैतिक दल सत्तासीन हो जाता है। महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश वह राज्य हैं जहां भाजपा कर्जमाफी की घोषणा के आधार पर सत्ता में आई थी। वहीं इस दफ़ा राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस पैंतरे से सफलता पाई है।

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