पुलवामा हमले के बाद से देशभर के न्यूज़ चैनल्स, भाजपाई प्रवक्ता और खुद प्रधानमंत्री मोदी हर रोज़ प्रतिपक्षी दलों को सेना के नाम पर राजनीति न करने की नसीहत देते रहे। पहले से कमज़ोर और बिखरे पड़े विपक्षी दलों ने इस नसीहत को मानते हुए वचन दे दिया था आतंक के खिलाफ सरकार का साथ देने का। ऐसे में देश के लिए इस नाज़ुक समय पर प्रतिपक्ष ने भले ही राजनीति की हो या न की हो, लेकिन ज़िम्मेदार सरकार खुद ही कई मौको पर मचलती रही। आतंकी हमले के बाद भी आतंकवादियों से एनकाउंटर में हमारे सैनिक शहीद होते रहे, लेकिन प्रधानमंत्री ने चुनावी रैलियों से तौबा नहीं की। पूर्वनियोजित सभाएं, रैलियां चलती रही, प्रधानमंत्री दहाड़े मारते रहे। हालांकि साथ ही साथ प्रधानमंत्री मोदी ने पूरी मुस्तैदी से सैन्य बलों को छूट देते हुए आगे की कार्यवाही पर भी नज़र बनाए रखी और भारतीय वायुसेना ने सफल स्ट्राइक करते हुए पीओके के आतंकी अड्डे उड़ा दिए। 1971 के बाद यह पहली बार था जब भारतीय वायुसेना ने एलओसी पार कर पाकिस्तानी आतंकियों को सबक सिखाया हो। हमारी वायुसेना के इस अद्भुत पराक्रम का श्रेय कोई नहीं ले सकता, फिर भी केंद्र सरकार की निर्णय क्षमता भी यहां तारीफ़-ए-क़ाबिल तो है ही। लेकिन किस हद तक! सेना शौर्य प्रदर्शन कभी इसलिए नहीं करती, कि अमुक पार्टी चुनाव में फ़ायदा उठा ले जाए, या सत्ताधारी दल के हाथ उसके नाम पर बटेर लग जाए।
ऐसे में सियासी सभाओं के मंचों पर से सैन्य पराक्रम के नाम पर अपनी पीठ थपथपाना कहां तक जायज है! क्या यह सैन्य बलों के नाम पर राजनीतिकरण नहीं!
आज तमिलनाडु में प्रधानमंत्री मोदी ने जो कहा वो जानिए:
विकास परियोजनाओं के शिलान्यास के लिए तमिलनाडु के कन्याकुमारी पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने जब पुलवामा के जवाब में भारतीय वायुसेना की एयर स्ट्राइक पर बोलना शुरू किया तो, जमकर पिछली सरकारों को कोसा। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि ”विपक्ष अपनी खुद की राजनीति को मजबूत करने के लिए भारत को कमजोर करना बंद करें। अफसोस की बात है कि मोदी से नफरत करने वाले कुछ दलों को भारत से नफरत होने लगी है। दुनिया आतंक के खिलाफ भारत की लड़ाई का समर्थन कर रही है, लेकिन कुछ दलों को आतंक के खिलाफ हमारी लड़ाई पर संदेह है। एक समय था जब समाचार रिपोर्ट पढ़ते थे- वायु सेना 26/11 के बाद सर्जिकल स्ट्राइक करना चाहती थी लेकिन यूपीए ने इसे अवरुद्ध कर दिया। आज, हम एक ऐसे युग में हैं जहां समाचार पढ़ता है- सशस्त्र बलों को वह करने की पूरी स्वतंत्रता है जो वे चाहते हैं। 26/11 हुआ, भारत ने आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई की उम्मीद की लेकिन कुछ नहीं हुआ। उरी हुई और आपने देखा कि हमारे बहादुर लोगों ने क्या किया। पुलवामा हुआ और आपने देखा कि हमारे बहादुर लोगों ने क्या किया। भारत वर्षों से आतंकवाद के खतरे का सामना कर रहा है। लेकिन, अब एक बड़ा अंतर है – आतंक के मद्देनजर भारत अब असहाय नहीं होगा। 2004 से 2014 तक कई आतंकी हमले हुए। राष्ट्र को अपरधियों को दंडित करने की उम्मीद थी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।”
अब आप ही तय कीजिए कि पतित राजनीति के दौर में दलीय उत्थान के लिए अबकी सेना और तबकी सेना करना कहां तक जायज़ है!
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