फरवरी की पहली तारीख को चुनाव से एन पहले मोदी सरकार अपने कार्यकाल का आखिरी बजट पेश कर चुकी है। अपने इस बजट में शिक्षा और स्वास्थ्य को किनारे करने वाली मोदी सरकार का दावा है कि किसानों और मज़दूरों के लिए यह बजट बहुत कुछ समेटे हुए है। ऐसे में बजट पढ़कर सरकार के दावे को परखा जाए तो समझ आता है कि अपने इस वार्षिक लेखांकन में सरकार ने किसानों के लिए ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि’ नाम की एक योजना शुरू करने का दावा किया है। एक और योजना, जिसकी दरकार शायद ही देश के किसान को थी, लेकिन मनमाने हुक्मरानों ने यहां भी अपने मन की बात कर ही डाली।
यहां आपको बता दें कि सरकार जिस योजना की परिकल्पना लेकर आई है, उसके तहत 5 एकड़ या इससे कम भूमि वाले लघु एवं सीमान्त किसान के परिवार को सरकार 6,000 रूपए हर साल उपलब्ध करवाने का दम्भ भर रही है। 6,000 रूपए प्रति वर्ष, मतलब हर महीने 500 रूपए और एक दिन के 17 रूपए से भी कम सरकार एक औसतन 5 सदस्यीय किसान परिवार को देने जा रही है।
17 रूपए में आधा लीटर दूध भी न आने वाले दौर में सरकार दावा कर रही है कि इससे देश के कुल 12 करोड़ किसानों को फ़ायदा होगा, मगर कमाल की बात यह है कि पहले से 500 रूपए महीने की वृद्धावस्था पेंशन ले रहे बूढ़े किसान का परिवार इस श्रेणी में नहीं आने वाला। ऐसे में बमुश्किल ही कोई किसान परिवार होगा जिसे दिन के 17 रूपए सरकार द्वारा नसीब होंगे। बावजूद इसके अपनी इस घोषणा से सरकार मान बैठी है कि उसने किसान हित में एक और नया कसीदा पढ़ डाला, और उन मांगों को गिड़गिड़ाहट में बदल दिया, जो किसान सालों से अपने हक़ के लिए शासन के सामने धीमे स्वर में व्यक्त कर रहा है।
एमएसपी पर कोई घोषणा नहीं, किसान को पकड़ाया नई योजना का झुनझुना:
गौरतलब है कि पिछले कई वर्षों से देशभर के किसान अपनी मांगों को लेकर सरकार के सामने विरोध दर्ज़ करवा रहे हैं। किसान दिल्ली के दरवाजे तक पैदल मार्च कर रहे हैं, प्रदर्शन कर रहे हैं। इन किसानों की मांग है कि सरकार संसद का एक सत्र किसानों के विषय पर आयोजित करवाए, जिसमें समस्याओं के अम्बार से जूझ रहे अन्नदाता की विकट स्थिति को विषय बनाकर चर्चा की जाए। किसान चाहते हैं कि राजव्यवस्था देश में ख़ुदकुशी करते किसानों की हालत पर मंथन करें, क़र्ज़ के बोझ तले पिसते किसान की हालत पर मंथन करें, फ़सल की कीमत न मिलने से परेशान किसान की हालत पर मंथन करें, बाढ़, सूखा, फ़सल खराबा से बर्बाद किसान की हालत पर मंथन करें। किसान की मांग अपने हक़/अधिकारों को लेकर है। अपनी कौम को लेकर है, अपने काम को लेकर है, लेकिन सत्ता किसान को नज़रअंदाज़ कर बैठी है, हर एक रैयत को ज़मींदार समझ बैठी है।
ऐसे में जहां किसान को आस थी कि आखिरी बजट में उसके हित की घोषणाएं कर राजशाही अपने गुनाहों को धोने का प्रयास करेगी, वहीं सरकार ने भूमिपुत्र के पांव के छाले कुरेद लिए हैं। बजट में न एमएसपी पर विमर्श हुआ, न फ़सल के वाज़िब दाम पर, न खाद पर, न कृषि पैदावार पर, न खेती के उपकरणों पर। बात हुई तो उस 500 रूपए प्रति महीने की खैरात पर, जिसे एक नई योजना का जामा पहनाकर झुनझुने के रूप में किसान को थमा दिया गया।
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