2014 में नरेंद्र मोदी के लिए वाराणसी छोड़ने वाले मुरली मनोहर जोशी को आज थामना नहीं चाहती भाजपा!

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Murli manohar joshi

‘भाजपा की तीन धरोहर- अटल, आडवाणी और मनोहर।’ एक दौर था जब भारतीय जनता पार्टी के हर एक सभा/सम्मलेन में इस नारे की गूंज सुनाई देती थी। भाजपा के संस्थापक रहे इन तीनों महारथियों में तीसरे स्थान पर आने वाले मुरली मनोहर जोशी का कद साल 2014 से पहले तक कभी भी पार्टी में आज प्रभुत्वशाली हुई पीढ़ी के किसी नेता से कम नहीं था। उस साल के पहले तक चाहे अमित शाह हो, नरेंद्र मोदी हो, राजनाथ, जेटली या कोई और; मुरली मनोहर के मायने पार्टी में इन सबसे कही अधिक होने के साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पसंदीदा होने के भी थे। 2014 में जब भाजपा ने अपने प्रधानमंत्री उम्मीदवार के लिए गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम आगे किया तो पार्टी सहमति को सहर्ष स्वीकारते हुए मुरली मनोहर जोशी ने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहे नरेंद्र मोदी के लिए अपनी संसदीय सीट वाराणसी छोड़ने में कोई हिचक नहीं की। वाराणसी से मोदी को बड़ी जीत दिलाने में भूमिका निभाते हुए जोशी कानपुर की सीट पर 2.23 लाख के मतान्तर से भारी जीत दर्ज़ करते हुए 6ठी बार लोकसभा पहुंचे।

अब बात आज की करें तो मुरली मनोहर जोशी ने कानपुर के मतदाताओं के नाम एक खत लिखकर बयां किया है कि ‘पार्टी नहीं चाहती कि मैं कानपुर या कही और से चुनाव लड़ूं।’ जोशी की व्यथा सामने लाने वाले इस खत के मायने तो यही कहते है कि भले ही 2014 में मुरली मनोहर जोशी ने नरेंद्र मोदी के लिए वाराणसी छोड़ दी हो, लेकिन आज 85 वर्ष के हो चुके जोशी को भाजपा थामना नहीं चाहती।

मुरली मनोहर जोशी का खत

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सहित सरकार के कई मंत्रालयों के प्रमुख रहे है जोशी:

2004 के लोकसभा चुनाव में पहली और आखिरी हार देखने वाले मुरली मनोहर जोशी के राजनीतिक जीवन को देखे तो इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफ़ेसर रहे जोशी इंदिरा सरकार द्वारा लागू किए गए आपातकाल के दौरान पूरे समय जेल में रहे। एक बार अल्मोड़ा, तीन बार इलाहाबाद, एक बार वाराणसी और एक बार कानपुर से जीतकर लोकसभा पहुंचे। दो बार उत्तरप्रदेश से राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए। 1991 से 1993 तक भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे तो पार्टी के महासचिव, कोषाध्यक्ष से लेकर सभी प्रमुख ज़िम्मेदारियों का निर्वहन किया। 13 दिन की अटल सरकार में गृह मंत्री बने, बाद में देश के मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय, विज्ञान एवं तकनीकी मंत्रालय का प्रभार सम्भाला।

चाहे सरकार में रहे हो या विपक्ष की भूमिका में मुरली मनोहर जोशी सदन में सदैव मुखर रहे। जोशी समय-समय पर संसद की कई समितियों के सक्रिय सदस्य रहे और अपनी बेहतर समझ के चलते संसदीय कार्यवाही के बेहतर संचालन में योगदान देते रहे। लेकिन साल 2014 में भाजपा के प्रचंड बहुमत से जीतकर आने के बाद लाल कृष्ण आडवाणी की तरह ही मुरली मनोहर जोशी को भी पार्टी ने मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया। न कोई मंत्रालयिक प्रभार दिया गया न पार्टी में प्रमुख पद।

75 पार के राजनेताओं को भाजपा नहीं दे रही चुनाव लड़ने का मौक़ा:

गौरतलब है कि लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के अलावा भाजपा में ऐसे कई ऐसे दिग्गज राजनेता हैं, जिनकी चुनावी राजनीति के आगे उनकी उम्र आड़े आ गई है। माना जा रहा है कि भाजपा ने इस चुनाव में 75 पार के नेताओं के टिकट काटकर युवा चेहरों को मौक़ा दिए जाने की रणनीति पर काम किया है। ऐसे में बी सी खंडूरी, करिया मुंडा, कलराज मिश्रा, बिजॉय चक्रवर्ती जैसे कई दिग्गजों के टिकट काटे गए हैं। वही सुषमा स्वराज, उमा भारती और सुमित्रा महाजन खुद ही चुनाव न लड़ने की घोषणा कर चुकी हैं।

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