जम्मू और कश्मीर के पुलवामा में हुए कायराना आतंकी हमले में देश के 12 जवान शहादत को प्राप्त हुए हैं, साथ ही अनेकों ऐसे हैं जो अभी ज़िन्दगी और मौत से जूझ रहे हैं। जम्मू से श्रीनगर जाते सीआरपीएफ के जवानों के काफिले पर घात लगाकर कायर आतंकियों ने यह हमला किया और हमारे जवानों ने देश के दुश्मनों को रोकने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। एक बार ज़रा मनन करके देखिए, यदि ये निर्भीक फौजी नहीं होते तो क्या होता! यकीन मानिए आतंकी कश्मीर भेदकर दिल्ली में घुसपैठ कर देते। उस दिल्ली में जिसके दरबानों को तो शायद फर्क ही नहीं पड़ता आए दिन पूर्णआहूत होते वीर जवानों और उनके ग़मगीन परिवारों से, क्योंकि राजधानी की राजशाही की नज़र तो राजनीतिक नफ़े-नुक़सान के अलावा कहीं ठहरती ही नहीं।
देश के पंतप्रधान अपनी 56 इंच की छाती का स्वांग रचाते हुए धड़ल्ले से हर रोज चुनावी सभा, रैलियों को सम्बोधित करते रहते है। राजनैतिक विपक्षियों पर छींटाकशी करते है, उन पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते है। इसी तरह गृहमंत्री कड़ी निंदा कर देते हैं, कुछ ट्वीट कर देते है, और अपनी ज़िम्मेदारी भुला बैठते है। इसके बाद फिर किसी सियासी सभा, बैठकों में सर्जिकल स्ट्राइक का गुणगान करने लगते है। सैन्य पराक्रम का बखान राजशाही कुछ इस तरह से करती है जैसे सरकार के मंत्रियों ने ही एलओसी पार कर आतंकी अड्डे उड़ाए थे। जम्मू और कश्मीर में आतंकियों से निपटना एक गंभीर समस्या है, मगर अफ़सोस की सरकार सियासी ठिठोलेबाजी से ज़्यादा कुछ कर नहीं रही। देश के प्रधानमन्त्री, गृहमंत्री, शिक्षामंत्री से लेकर लगभग सभी मंत्रालयों के प्रमुखों ने अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार राजनैतिक दल के एजेंट की शक्ल बना ली है। पहले जी भरकर विदेशी दौरे और अब भारत भ्रमण में लगे हुए प्रधानमन्त्री महोदय 2014 के आम चुनाव में 1 के बदले 10 सर लाने की बात कहते थे, लेकिन लगता है कि सुकूनपरस्त सत्ता की आरामशाही के चलते आज ढीले पड़ गए है। इस लेख से सरकार की चिर निद्रा में खलल पड़ेगा, इसकी गारंटी तो नहीं है, लेकिन उम्मीद है कि नामुराद सत्तरूढ़ो तक यह आवाज़ ज़रूर पहुंचेगी।
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