26 दिसंबर 1914 के दिन महाराष्ट्र प्रान्त (तत्कालीन बम्बई) के वर्धा जिले के हिंगणघाट शहर में जन्म हुआ मुरलीधर देवीदास आम्टे का। मानवता व सेवा कार्य में पूरा जीवन समर्पित कर देने वाले इस शख्स को इतिहास में बाबा आम्टे के नाम से जाना गया। गूगल ने आज उनकी जयंती पर बाबा आम्टे को समर्पित डूडल बनाकर श्रद्धांजलि दी है।
बाबा आम्टे कुशल कानूनविद एवं महान मानव सेवक थे। अपनी पत्नी साधना आम्टे के साथ मिलकर बाबा आम्टे ने आजीवन कुष्ठ पीड़ितों की सेवा और सशक्तिकरण करने के लिए देशभर में सेवा आश्रमों की स्थापना की। बाबा आम्टे ने कुष्ठ पीड़ितों के उपचार एवं उनके पुनर्वास के लिए महाराष्ट्र के चंद्रपुर में ”आनंदवन” की स्थापना की। उस परिवेश एवं दौर में जब कुष्ठ रोगी को स्वास्थ्य के साथ ही सामाजिक हीन भावना से देखा जाता था, बाबा आम्टे ने इसके बारे में जन-जागरुकता का प्रचार किया। कहा जाता है कि आमजन को कुष्ठ संक्रामक नहीं होता, ऐसा विश्वास दिलाने के लिए बाबा आम्टे अपने शरीर में रोगाणुओं से भरा इंजेक्शन लगवाकर यह साबित करते थे। बाबा आम्टे पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी संतुलन, जैव विविधता संरक्षण के कार्य में भी सदैव सक्रिय रहे। आदिवासियों व जनजातियों के हक़/अधिकारों के लिए बाबा आम्टे ”नर्मदा बचाओ आंदोलन” से भी जुड़े रहे। 9 फरवरी 2008 वह दिन था, जब 93 वर्ष की आयु में आनंदवन में सेवारत बाबा आम्टे का देहावसान हो गया।
महात्मा गांधी के अनुयायी थे बाबा आम्टे:
प्रखर गांधीवादी बाबा आम्टे का जीवन महात्मा गांधी से बहुत हद तक प्रभावित था। खादी पहनने से लेकर चरखा कातने जैसे कार्यों से बाबा आम्टे गांधीवाद एवं स्वदेशी को बढ़ावा देने के अभियान में भी लगे रहे। युवावस्था में राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ने वाले बाबा आम्टे ने 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भी सक्रिय भूमिका निभाई। महात्मा गांधी ने इन्हें ‘अभय साधक‘ कहा।
अनेकों पुरस्कारों से हुए सम्मानित:
जीवनपर्यन्त सेवारत रहने वाले बाबा आम्टे को अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इन्हें 1971 में पद्मश्री, 1975 में रैमन मैग्सेसे, 1978 में राष्ट्रीय भूषण, 1979 में जमनालाल बजाज पुरस्कार, 1986 में पद्म विभूषण, 1988 में यूएन मानवाधिकार पुरस्कार, 1990 में टेम्प्लेटन पुरस्कार, 1999 में गांधी शान्ति पुरस्कार तथा डॉ.अम्बेडकर अंतर्राष्ट्रीय सम्मान, 2004 में महाराष्ट्र भूषण आदि अनेकों राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए।
यूएन मानवाधिकार पुरस्कार से सम्मानित होने वाले इकलौते भारतीय: बाबा आम्टे इकलौते भारतीय है जो मानवाधिकार के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा की तरफ से दिए जाने वाले यूएन मानवाधिकार पुरस्कार से सम्मानित हुए है। दुनियाभर में मानव अधिकारों के संरक्षण व प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में असाधारण काम करने वाले व्यक्तियों तथा संस्थाओं के सम्मान के लिए वर्ष 1966 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार पुरस्कार की स्थापना की गई थी। इसके बाद साल 1968 से प्रत्येक पांच साल में यह पुरस्कार दिया जाता है।
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