केंद्र-राज्य में तालमेल की कमी को भुगत रहा है किसान, लाठी खाकर भी यूरिया लेने को मज़बूर अन्नदाता

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Indian Farmer

दिसंबर का महीना ख़त्म होने को है। रबी की फसल और खेती के लिए सर्वश्रेष्ठ समयकाल सर्द मौसम अपने चरम पर है। पर अफ़सोस कि देश के अन्नदाता को अपने खेती-बाड़ी की आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए मशक्कत और मज़बूरी झेलनी पड़ रही है।

जी हां, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार वे राज्य हैं जहां इस वक़्त यूरिया खाद के लिए कोहराम मचा हुआ है। घंटों लाइन में लगकर किसान अपने खेत की उर्वरता और फसल की उत्पादकता के लिए यूरिया की फ़रियाद कर रहे हैं। इन राज्यों में यूरिया की किल्लत इस कदर हावी है कि अधिकारियों की मौजूदगी और पुलिस के पहरे में रियायती यूरिया बेचा जा रहा है। किसानों के आधार कार्ड और कृषि के दस्तावेज जांचे जा रहे हैं। लम्बी-लम्बी कतारों में घंटों इंतज़ार करवाया जा रहा है। बावजूद इसके यूरिया मिल जाएगा, इसकी गारंटी नहीं।

राज्य नहीं कर पाए आंकलन तो केंद्र ने नहीं की भरपूर आपूर्ति:

गौरतलब है कि वर्तमान में यूरिया की भारी किल्लत के पीछे सबसे बड़ी वजह केंद्र और राज्य सरकारों में आपसी तालमेल अथवा सामंजस्य की कमी रही। उदाहरणतः राजस्थान की ही बात करे तो यहां विधानसभा चुनाव से पहले से ही यूरिया की कमी होने लगी थी, लेकिन चुनावों की व्यस्तता के मद्देनज़र अधिकारी, नेताओं ने इसे गंभीरता से लिया ही नहीं। चुनाव संपन्न हुए तो संकट अधिक गहरा चुका था। अब किसान अपनी फसल और खेत के पोषण के लिए सडकों पर नज़र आने लगे। कोहराम मचा तो सरकारों की नींद टूटी और ध्यान दिया अपने विभाग और भण्डार गृह पर। मालूम हुआ कि अक्टूबर और नवम्बर माह में राज्य, केंद्र के सामने यूरिया की उचित मांग नहीं रख पाई थी। इसके साथ ही केंद्र ने भी मांगे गए यूरिया में से थोड़ी कटौती करके राज्यों को भेजा था। लगातार दो महीना इस तरह आपूर्ति में कमी रहने के बाद दिसंबर में जब सरकार चेती, तो अपनी-अपनी गलतियां छुपाने के लिए ज़िम्मेदार एक-दूसरे पर आक्षेप लगाने लगे। अब जाकर यूरिया की आपूर्ति और खेप बढ़ाई गई है। देखना है कि किसानों को राहत कब तक मिलती है।

लाठीचार्ज के बाद भी शीतलहर में डटा है किसान, क्योंकि फसल नहीं तो कल नहीं:

मध्य प्रदेश और राजस्थान में यूरिया का संकट इस कदर छाया है कि कतार में खड़े होकर खाद के लिए अपनी बारी का इंतज़ार करते किसानों में रोष साफ़ दिखाई देता है। रोष उस व्यवस्था के खिलाफ जब ईमानदारी से पंक्ति में अपनी बारी का इंतज़ार करते किसान को खाली हाथ लौटने पर खाद की कालाबाज़ारी करते दलालों का सामना करना पड़ता है। लेकिन किसानों का यह रोष और जायज़ मांग शायद सत्तासीनों को रास नहीं आती। मध्य प्रदेश के श्योपुर में उर्वरक और खाद पहुंचाने में नाकाम रहा प्रशासन किसानों पर लाठीचार्ज तक करवा देता है। मगर किसान को मालूम है कि घर चलाना है तो फसल उगानी पड़ेगी, और अगर फसल उगानी है तो यूरिया भी लेना ही पडेगा। इसीलिए चमड़ी गलाती शीतलहर के बीच लाठीचार्ज का सामना करने वाला अन्नदाता खामोश होकर कतार में सिर्फ यूरिया के लिए अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा है।

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