मशहूर शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की पैदाइश-ए-सालगिरह पर जानिए उनकी दास्तां-ए-ज़िन्दगी को

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creation of M.F. Hussain

उर्दू और फ़ारसी के अज़ीम फन को अपनी बेमिसाल लिखावट की कारीगरी से तिलिस्मी बना देने वाले ”मिर्ज़ा ग़ालिब” के पैदाइश की 221वीं सालगिरह पर याद करते हैं मोहब्बत, नसीहत और समझाइश को अपनी बज़्म में समेटे उस उस्ताद को जिसने खुश बहारें भी देखी तो सितम भी झेला। ज़िन्दगी के हर रंज-ओ-गम के दौर से गुज़रते हुए किसी पैमाइश से परे लिखने वाले ”मिर्ज़ा असदुल्लाह खान” उर्फ़ मिर्ज़ा ग़ालिब, साल 1797 की 27 दिसंबर को आगरा की तंग मगर हसीं बस्ती में पैदा हुए। पहले ‘असद’ के नाम से लिखना शुरू किया, बाद में उनका तखल्लुस ‘ग़ालिब’ हो गया। मुग़ल दरबार में दरबारी हुए तो ‘मिर्ज़ा ग़ालिब’ कहलाने लगे।

बताते हैं कि मध्य एशिया से ताल्लुख रखने वाले उनके दादा मुग़ल बादशाह शाह आलम-II की हुक़ूमत में सेना में भर्ती होने के लिए भारत आए थे। ग़ालिब के वालिद भी सेना में सिपाही बने। महज़ 5 साल की उम्र में ग़ालिब अपने वालिद को खो चुके थे, अब परवरिश उनके चाचा के ज़िम्मे थी। अभी चार बरस और बीते, कि चाचा भी चल बसे। इसके बाद ग़ालिब अपने नाना द्वारा पाले-पोसे गए। 13 साल की उम्र में निकाह हो गया। फिर आगरा के अपने पुश्तैनी मकान को किराए पर देकर दिल्ली चले आए, और पुरानी दिल्ली के बल्लीमारां मोहल्ले में खुद किराएदार के तौर पर रहने लगे। हज़ारों अरमां, अफ़साने दर्द और दास्तां के साथ साल 1869 में ग़ालिब यहीं से रुखसत हुए।

ग़ालिब ने उर्दू और फ़ारसी में अनेकों बेहतरीन ग़ज़ल, शेर, शायरी, रुबाई, सेहरा, मर्सिया और नज़्में लिखी। शतरंज और जुआ-पासा खेला, किताबें उधार लेने लगे, कर्ज़दार हो गए, शराब के आदी हुए, कई मौकों पर कायदे-क़ानून की खिलाफत की, जेलखाने भी जाना पड़ा। बावज़ूद इन सबके भी जिस चीज़ ने उन्हें ख़ास बनाया, वह उनका अदब और अंदाज़ था।

मनफ़राद आदमी थे ग़ालिब:

हालांकि ग़ालिब ने ज़माने की रीत पर चलकर कोई रस्मी तालीम हासिल नहीं की थी, लेकिन बुज़ुर्गों और मौलवियों की बंदगी में रहकर अरबी व फारसी पाठ, तार्किकता, दर्शन आदि में हुनरमंद हो चुके थे। फिर अपनी तजस्सुस से उसे तराशते हुए बुलंदी तक ले गए। ग़ालिब पुराने और अपने दौर की लिखावट का मुतालआ (अध्ययन) करने के साथ ही शब्दों के चुनाव और जमावट के तौर-तरीके में बेहतरी लेकर आए। गैर यकीन-ए-दौर तक बीमारी और बेगारी से जूझते हुए उर्दू अदब का वह चमकीला सितारा 73 की उम्र में डूब चुका था। ग़ालिब को दिल्ली की चारदीवारी से परे निज़ामुद्दीन में दफ़नाया गया।

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