नाकाम और बेमेल महागठबंधन, 2019 में कैसे करेगा भाजपा का मुक़ाबला

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साल 2019 में भारत की 17वीं लोकसभा के चुनाव होने जा रहे है। इस चुनाव में जहां सत्ताधारी राजनैतिक दल फिर से सफलता दोहराना चाहेगा, तो वहीं विपक्ष की ज़ोर-आजमाइश, राजव्यवस्था से शासक दल को बेदखल कर, खुद सरकार में स्थापित होने के लिए रहेगी। देश की वर्तमान राजनीतिक स्थिति पर गौर करे तो 2014 के पिछले आम चुनाव में 282 लोकसभा सीट जीतकर, अपने दम पर बहुमत प्राप्त करने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शासन में है। इसी के साथ उस चुनाव में 44 सीटों पर सिमट जाने वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सबसे बड़ा विपक्षी दल है। राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर के अन्य छोटे-बड़े राजनैतिक दल भी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) व संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की भागीदारी में अथवा स्वतंत्र रूप से अपना अस्तित्व रखते हैं। अब समझते हैं निकट भविष्य 2019 के परिदृश्य को, जिसके लिए विपक्ष के सभी दल व राजनेता महागठबंधन की अवधारणा लिए एकमत नज़र आ रहे हैं। दरअसल मज़बूत नज़र आ रही सत्तासीन भाजपा के खिलाफ विपक्ष की एकजुट मोर्चाबंदी ही महागठबंधन है।

बिहार से उपजी अवधारणा यूपी में हो चुकी है फेल:

वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में महागठबंधन की बात करे तो साल 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम से उत्साहित होकर इस धारणा ने जन्म लिया। उस समय बिहार में शासक दल जेडीयू के नेतृत्व में कांग्रेस और आरजेडी ने साथ मिलकर महागठबंधन के रूप में भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा। 243 विधानसभा सीटों वाले बिहार की 178 सीट महागठबंधन के खाते में गई। अजेय मानी जाने वाली भाजपा के खिलाफ आए इस अप्रत्याशित परिणाम ने तब विपक्ष में नई जान फूंक दी थी।

लगने लगा कि विपक्षी एकता का महागठबंधन ही मोदी और भाजपा का विकल्प है। बिहार के बाद साल 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में भी यहीं प्रयोग दोहराया गया। भाजपा की खिलाफत करने के लिए समाजवादी पार्टी और कांग्रेस एक हो गई। परिणाम इस बार भी अप्रत्याशित ही रहे, लेकिन महागठबंधन फॉर्मूले पर करारे तमाचे के रूप में। 403 सीटों वाली यूपी विधानसभा में भाजपा ने 312 सीटों के साथ रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन किया और सपा-कांग्रेस का गठबंधन धरा का धरा रह गया।

बेमेल विचारधाराओं का संगम है महागठबंधन:

2019 के मद्देनज़र महागठबंधन बनाने के लिए हाथ-पैर मार रही कांग्रेस पार्टी शायद यह भूल रही है कि भारत के अधिकांश राजनीतिक दलों का उदय कांग्रेस विरोध की विचारधारा के साथ ही हुआ है। कांग्रेस विरोध की विचारधारा के साथ ही लोहिया ने समाजवादी पार्टी, कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी, लालू प्रसाद यादव ने राष्ट्रीय जनता दल, शरद पंवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस, करूणानिधि ने एआईडीएमके और अरविन्द केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाई थी। ऐसे में अब यहीं दल यदि आपसी सौदे-समझौते के तहत गठजोड़ करके महागठबन्धनी स्वरूप में एक हो जाते हैं तो क्या वह बेमेल विचारधाराओं से इतर कुछ होगा, यह विचार का विषय है।

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