हार-जीत के अनुमान की दृष्टि से देखा जाए तो राजस्थान विधानसभा के नतीजे ने राजनीतिक चिंतकों के साथ-साथ लगभग सभी लोगों के कयासों पर मुहर लगाई है। नतीजों के आने से पहले राजस्थान की सियासी हवा भी इस बात की गवाही दे रही थी कि प्रदेश में भाजपा सत्ता से दूर होने वाली है। भाजपा सरकार का कमज़ोर प्रदर्शन, विपक्ष के रूप में कांग्रेस की आक्रामक रणनीति, हर पांच साल में सत्ता का एकान्तरण आदि वे कारण थे जिनसे राजस्थान से भाजपा का जाना करीब-करीब तय ही माना जा रहा था। भाजपा के लिए पूरी तरह से प्रतिकूल माहौल में राजनीतिक विश्लेषक कांग्रेस की बम्पर जीत का अनुमान लगाए बैठे थे। तमाम एग्जिट पोल भी राजस्थान में कांग्रेस की बड़ी जीत का दावा कर रहे थे। ऐसा माना जा रहा था कि इस चुनावी दौड़ में कांग्रेस बहुमत से कहीं आगे निकल जाएगी। बावजूद इन सबके कांग्रेस असल परिणाम में मुश्किल से ही बहुमत को छू पाई। कांग्रेस के केवल 99 प्रत्याशी ही जीतकर विधानसभा पहुँच पाए। कांग्रेस के लिए सफलता मानी जाने वाली इस अप्रत्याशित असफलता का प्रमुख कारण प्रदेश में निर्दलीयों व अन्य राजनैतिक दलों की सक्रियता के साथ बागियों की बगावत रही। जिस कारण कांग्रेस के लिए राजनीति के समीकरण मनमाफ़िक साबित नहीं हो सके।
अन्य दलों व निर्दलीयों ने भी हासिल किया अच्छा-खासा वोट शेयर:
राजस्थान विधानसभा के चुनावों में इस बार निर्दलीय काफी हद तक छाए रहे। गौरतलब है कि 199 में से कुल 27 विधायक ऐसे चुने गए, जो कांग्रेस या भाजपा से सम्बद्ध नहीं थे। इनमें 13 विधायक निर्दलीय चुने गए तथा अन्य दलों के 14 प्रत्याशी विधानसभा पहुंचे। अन्य दलों की बात करे तो 6 सीटों पर जीत के साथ बसपा तीसरे स्थान पर रही। हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने 3 सीटें जीती। इसी के साथ सीपीएम से 2, बीटीपी से 2 व राष्ट्रीय लोकदल से एक प्रत्याशी ने जीत हासिल की। वोट शेयर की बात करे तो निर्दलीय उम्मीदवारों ने कुल 9.4% मत हासिल किए उसके बाद बसपा ने 4%, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने 2.4% व सीपीएम ने 1.2% मत हासिल किए।