नागरिकता संशोधन बिल पर सहयोगियों के विरोध के बावजूद पूर्वोत्तर में इतनी कमज़ोर नहीं होगी भाजपा

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posted by @narendramodi

पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान और बांग्लादेश से भारत आने वाले अल्पसंख्यक हिन्दू, सिख, जैन, पारसी, ईसाई व बौद्धों के लिए भारत के नागरिकता के नियमों में ढील देने वाला नागरिकता संशोधन बिल लाकर सरकार ने मुख्यतः अपने हिंदुत्व लगाव को दर्शा दिया है। इस बिल को लोकसभा में लाने के बाद ही असम गण परिषद ने असम की भाजपा सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। इसके अलावा देखें तो कांग्रेस, ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट, माकपा, तृणमूल कांग्रेस व भाजपा की सहयोगी शिवसेना भी इस विधेयक के विरोध में उतर आई थी। बावजूद इसके भाजपा बिल के लिए अडी रही है।

इस बिल के विरोध का मुख्य कारण उत्तर पूर्वी राज्यों की संस्कृति व सुरक्षा को माना जा रहा है। गौरतलब है कि बांग्लादेश से अक्सर भारी संख्या में शरणार्थियों के भारत में घुस आने की खबरें आती रहती है। ये शरणार्थी मुख्यतः असम, बंगाल व अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों में बस जाते हैं। संस्कृति, सभ्यता, विविधता व अपनी अनोखी पहचान की दृष्टि से भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों को संवेदनशील माना जाता है। यहां अनेकों क्षेत्रीय समुदायों, जाति – जनजातियों के प्रकार अपना अस्तित्व रखते हैं। ऐसे में इन राज्यों में आकर बस जाने वाले शरणार्थियों को लेकर अक्सर यह सवाल उठाया जाता रहा है, कि ये राज्य की संस्कृति और यहां के मूल निवासियों के लिए खतरा हो सकते हैं।

इन्हीं बातों के आधार पर क्षेत्रीय छोटे-छोटे संगठन व राजनैतिक दल विपक्ष के साथ मिलकर सरकार के इस बिल का विरोध कर रहे हैं। विपक्ष की तरफ़ से असम बंद का आह्वान भी किया गया था।

इसके अलावा धार्मिक आधार पर नागरिकता का निर्धारण भी हमारी संवैधानिक मूल भावना की खिलाफत करता है। ऐसे में उत्तर-पूर्वी राज्यों का हिन्दू समुदाय भले ही भाजपा के साथ आ जाए लेकिन गैर हिन्दू जनसंख्या सीधे तौर पर भाजपा के विरोध में खड़ी हो सकती है। बताया जा रहा है कि भाजपा द्वारा लाया गया नागरिकता संशोधन बिल उत्तर-पूर्वी राज्यों के कई क्षेत्रीय दलों को भाजपा से अलग कर सकता है। उत्तर पूर्वी राज्यों की 11 राजनैतिक पार्टियों के साथ भाजपा के नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (NEDA) में भी इस बिल के आने के बाद अब बगावत हो सकती है।

भाजपा फायदे में भी हो सकती है और नुकसान में भी:

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नागरिकता संशोधन बिल के विषय पर अधिकतर दलों के भाजपा के विरोध में होने के कारण हो सकता है कि भाजपा उत्तर-पूर्व में अकेली पड़ जाए, लेकिन उस स्थिति में इन राज्यों की हिन्दू जनसंख्या एकमत रूप से भाजपा की तरफ़ हो जाएगी। ऐसे में यह आत्मनिर्भरता भाजपा के लिए राजनैतिक चढ़ाव भी हो सकता है तो ढलान भी।

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