धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान का मूल तत्व है। इसी संविधान के विधान को ध्यान में रखकर देश में क़ानून-कायदे, पाबंदियां और प्रावधान निर्धारित किए जाते हैं। संविधान के संरक्षण की ज़िम्मेदारी महती रूप से देश की न्यायपालिका के कन्धों पर आती है। ऐसे में ये ज़िम्मेदार लोग ही यदि संवैधानिक मूल भावना से इतर बात करे, तो अनायास ही चर्चा का विषय बन उभरता है।
कुछ यहीं हुआ जब भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य मेघालय के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एसआर सेन ने अपनी टिप्पणी में भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की बात पर बल दिया। न्यायमूर्ति सेन ने कहा कि बंटवारे के वक़्त पाकिस्तान इस्लामिक राष्ट्र बन गया था, और हम धर्मनिरपेक्ष बने रहे। उस समय हमें भी अपने देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर लेना चाहिए था।
यह है पूरा मामला:
न्यायालय की तरफ से यह टिपण्णी एक मामले की सुनवाई के दौरान की गई है। गौरतलब है कि अमन राणा नाम का एक व्यक्ति, जिसे निवास प्रमाण पत्र देने से मना कर दिया गया, उसने मेघालय उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। इस याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायाधीश एसआर सेन ने दुनिया में कहीं से भी भारत में आकर रहने वाले हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, इसाई, खासी, जयंतिया और गारो समुदाय के लोगों को बिना किसी दस्तावेज जांच की कठिनाई अथवा सवाल-जवाब के भारतीय नागरिकता देने के प्रावधान के लिए केंद्र सरकार से अनुरोध किया है। जस्टिस सेन ने कहा कि पड़ौसी देशों में इन लोगों को प्रताड़ित किया जाता है, वहां इनके साथ सम्मानजनक व्यवहार नहीं किया जाता, इस बात को समझते हुए हमें इन लोगों को अपनाना चाहिए।
यहां आपको बता दें कि केंद्र सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन बिल–2016 के अनुसार पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आकर भारत में बसने वाले सिख, हिन्दू, जैन, पारसी, बौद्ध, ईसाई को 6 वर्ष से अधिक समय हो जाने पर भारत की नागरिकता के योग्य माना जाता है।
जैसा कि हम जानते हैं कि भारत के संविधान में न्यायपालिका और कार्यपालिका के पृथक्करण का सिद्धांत शामिल है। इसके अलावा हमारे यहां न्यायाधीशों के लिए राजनीतिक बयानबाजी से दूर रहने की हिदायत भी उनकी आचार संहिता में दी गई है। ऐसे में न्यायाधीश एसआर सेन के इस बयान का औचित्य किस मायने में तथा किस हद तक परिहार्य होता है, यह देखने वाली बात होगी।